आरजु प्यार की
संग संग हम जी लें मर लें ,संग संग में कुछ तो कर लें ,
अंतर्मन हम प्यार ये भर लें ,
प्रेम बंधन आरजु प्यार की ।
मन को हम मन से मिला लें ,
नहीं किसी से हम गिला लें ,
उर संग उर को ही खिला लें ,
कुछ ले दे आरजु प्यार की ।
भर ले रंग और भर दे तू रंग ,
बाकी रहे न कोई भी ये अंग ,
प्यार का रंग कभी हो न भंग ,
जीवन जंग आरजु प्यार की ।
जैसे पावन हो रंग माता गंग ,
वैसा ही है इस प्यार का रंग ,
प्यार होता नहीं कभी अपंग ,
जग ये संग आरजु प्यार की ।
मिलजुल बन जाऍं हम यारा ,
बहा दें गंग सा प्रेम का धारा ,
कर से कर दिल से दिल मिले ,
हों हम एक आरजु प्यार की ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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