आस्था से मानते है
तर्ज : ये मेरे वतन के लोगो...ईश्वर को सब मानते है
पर उसे जानते नही है।
देखा है उसको सब ने
बस पत्थर की मूरत में।।
जब भी हुआ कोई कष्ट
पहुँच जाते है उसके सामने।
करते है उससे प्रार्थना
की दूर कर दो कष्ट।
फिर बड़े आदर भावों से
रखते है चरणों में पुष्प।
और लोभ देते है उसको
चढ़ाएँगे आकर के श्रीफल।।
भूल हमेशा वो जाता है
किससे क्या बोल रहा है।
जिसने तुझे पैदा किया
तू उसको लोभ दे रहा है।
और खुदको श्रेष्ठ श्रावक
उसके संमुख मान रहा है।
शर्म कर हे आदि मानव
किसके सामने मूल्यांकन कर रहा है।।
सिर्फ कल्पनाओं से ईश्वर को
तू उस पत्थर में देख रहा है।
और अपने भावों से तू
बस श्रध्दा से पूजा रहा है।
हुआ कार्य सिध्द अगर तो
भक्ति तेरी बहुत बढ़ जायेगी।
पर कर्म किया है जो तूने
फल उसका तो मिलेगा ही।
संजय का गीत तुम्हें ये
आस्था का पाठ पढ़ायेगा।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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