"उपयोगिता से अनुभूति की ओर"
मानव जीवन का समस्त संघर्ष प्रयोजन की परिधि में सीमित रहता है। किंतु प्रयोजन का अन्तिम बिन्दु ही सौंदर्य का उद्गम-स्थल है। उपयोगिता केवल भौतिक तृप्ति प्रदान करती है, परंतु सौंदर्य आत्मा के गहनतम आयामों को छू लेता है। जब दृष्टि लाभ-हानि के गणित से ऊपर उठती है, तभी अस्तित्व का निखिल वैभव उद्घाटित होता है। यही वह क्षण है जब वस्तु साधन न रहकर साध्य बन जाती है, एवं जीवन साधारण उपभोग से विलग होकर रस, अनुभूति एवं आनंद का पर्याय हो जाता है। अतः प्रयोजन से परे ही वास्तविक सौंदर्य का वास है—शुद्ध, निर्मल एवं नितान्त आत्मानुभूत।
आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो प्रयोजन सीमित है, जबकि सौंदर्य अनन्त। प्रयोजन देह एवं इन्द्रिय की आवश्यकताओं तक बंधा है, पर सौंदर्य आत्मा की परिष्कृत दृष्टि से प्रस्फुटित होता है। जब मनुष्य प्रयोजनात्मकता से मुक्त होकर किसी पुष्प को देखता है, किसी संध्या को निहारता है, या किसी सुर-लहरि में डूब जाता है, तब वह क्षण क्षणिक न होकर शाश्वत हो जाता है। वहाँ कोई अपेक्षा नहीं, केवल अनुभव है; कोई स्वार्थ नहीं, केवल साक्षात्कार है। यही सौंदर्य, साधक को परमार्थ की ओर ले जाकर दिव्यता का साक्षी बनाता है, जहाँ अस्तित्व स्वयं में एक उत्सव प्रतीत होता है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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