बिहार के बुनकर कमलेश कुमार राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार के लिए चयनित

- राजगीर का शांति स्तूप तसर साड़ी में उकेरने की अनूठी कला को मिला सम्मान
भागलपुर, 1 अगस्त 2025
बिहार की पारंपरिक हथकरघा विरासत को देशभर में पहचान दिलाने वाले नालंदा जिले के सिलाव, नेपुरा गांव के सुप्रसिद्ध बुनकर कमलेश कुमार को वर्ष 2025 के राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। यह पुरस्कार उन्हें भारत सरकार के हथकरघा विकास आयुक्त कार्यालय द्वारा उनके बावन बूटी साड़ी बुनाई की जटिल और विलक्षण शिल्पकला में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदान किया जा रहा है।
बुनकर सेवा केंद्र, भागलपुर द्वारा नामित कमलेश कुमार का यह चयन बिहार के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है, क्योंकि यह पहला अवसर है जब किसी बुनकर को यह प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो रहा है। 7 अगस्त को नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित होने वाले 11वें राष्ट्रीय हथकरघा दिवस समारोह में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा उन्हें यह सम्मान प्रदान किया जाएगा।
बावन बूटी बुनाई की विरासत के संरक्षक
कमलेश कुमार ने बताया कि उन्हें यह कला अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है और वे राजगीर के शांति स्तूप को तसर साड़ी में उकेरने की अनूठी प्रस्तुति के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित हो रहे हैं। यह कार्य न केवल कलात्मक उत्कृष्टता का प्रतीक है, बल्कि बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व भी करता है। उन्होंने यह भी बताया कि वे निफ्ट पटना सहित देश के कई संस्थानों में इस दुर्लभ कला के प्रशिक्षण से भी जुड़े हुए हैं।
विशेषज्ञों ने की सराहना
बुनकर सेवा केंद्र, भागलपुर के उपनिदेशक श्री राजेश चटर्जी ने कहा कि कमलेश कुमार का यह चयन बिहार के लिए गौरव की बात है और इससे बुनकर समुदाय को नई पहचान और सम्मान प्राप्त हुआ है। तकनीकी पर्यवेक्षक प्रभात कुमार सिंह ने हथकरघा को बढ़ावा देने के उपायों पर प्रकाश डाला, जबकि वस्त्र डिजाइनर अनिरुद्ध रंजन ने बावन बूटी की बुनाई को तकनीकी दृष्टिकोण से अत्यंत जटिल एवं उत्कृष्ट बताया।
कमलेश कुमार का आभार
अपनी उपलब्धि पर कमलेश कुमार ने भारत सरकार एवं बुनकर सेवा केंद्र, भागलपुर का विशेष धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि यह सम्मान केवल उनका नहीं, बल्कि समस्त बुनकर समाज का है। यह पुरस्कार हथकरघा उद्योग को नई दिशा देगा और युवाओं को इस ओर प्रेरित करेगा। यह उपलब्धि बिहार की स्वदेशी कला, शिल्प परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर को राष्ट्रीय पटल पर उजागर करने की दिशा में एक मजबूत कदम है। कमलेश कुमार की यह सफलता आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनकर उभरेगी।
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