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‌‌ "मौनेन कलहो नास्ति"

‌‌ "मौनेन कलहो नास्ति"

प्राचीन समय की बात है। कश्यपपुरी नगर में एक बुढ़िया अपने पुत्र रामाश्रय के साथ रहती थी। माँ-बेटा किसी तरह से जीवन रूपी गाड़ी को खींच रहे थे। रामाश्रय भोला-भाला एवं शांत स्वभाव का लड़‌का था। धार्मिक प्रवृति का होने के कारण दूसरों की मदद करना अपना धर्म समझता था। उसके परोपकारी स्वभाव के कारण ही सभी लोग उससे प्यार करते थे।


बचपन को पार करके रामाश्रय जब युवावस्था में पहुँचा तो उसकी माँ को उसकी शादी की चिन्ता परेशान करने लगी। गाँववालों के प्रयास एवं ईश्वर की कृपा से रामाश्रय की शादी हो गयी। शादी के बाद इनकी स्थिति और भी दयनीय हो गयी। रामाश्रय की माँ अक्सर बीमार रहने लगी। अपना निकट समय आया देख उसकी माँ बोली , "बेटा, बहू को ले आओ। उसे देखने की बहुत इच्छा हो रही है।"


माँ की आज्ञा सुनकर रामाश्रय ससुराल जाने की तैयारी करने लगा। जाने से पहले माँ उससे बोली, "बेटा, ससुराल में खिचड़ी माँगकर अवश्य खाना क्योंकि खिचड़ी खाने से ग्रहों का नाश होता है।" रामाश्रय ने कहा , "ठीक है माँ, अब मैं चलता हूँ।" इतना कहकर वह ससुराल की ओर चल पड़ा।


रामाश्रय थोड़ा भुलक्कड़ स्वभाव का था इसलिए माँ की बात खिचड़ी को दोहराता हुआ चला जा रहा था। रास्ते में उसका एक परम मित्र मिला। मित्र ने पूछा , हे मित्र, इस तरह सज-धज कर तुम कहाँ जा रहे हो। मित्र की बात सुनकर उसने कहा , " मित्र, मैं अपनी पत्नी को लाने के लिए उसके मायके जा रहा हूँ। मित्र ने कहा कि ऐसा क्यों नहीं कहते कि तुम ससुराल जा रहे हो। कुछ देर इसी तरह गपशप करते हुए दोनों मित्र अलग हुए। मित्र से बात करने के क्रम में रामाश्रय माँ के द्वारा बताए गये शब्द 'खिचड़ी' भूल गया। बहुत याद करने के बाद उसे 'खिचड़ी' के स्थान पर 'खाचिड़ी' शब्द याद आया। अब वह 'खा चिड़ी' शब्द को ही दोहराता हुआ आगे बढ़ा ।


आगे एक किसान अपने खेतों से चिड़ि‌याँ भगाने के लिए 'उड़‌ चिड़ी, उड़ चिड़ी' शब्द को दोहरा रहा था तभी रामाश्रय 'खा चिड़ी ,खा चिड़ी' कहता हुआ वहाँ पहुँच गया। रामाश्रय की बात को सुनकर किसान गुस्सा आ गया। वह बोला , "मैं चिड़ि‌याँ भगाने के लिए 'उड़ चिड़ी ,उड़‌ चिड़ी' दोहरा रहा हूँ और तुम हो कि 'खा चिड़ी, खा चिड़ी' कहकर उन्हें अनाज खाने का निमंत्रण दे रहे हो। वह किसान से अपनी गलती के लिए क्षमा माँगा और पूछा - भाई आखिर मैं क्या कहता हुआ आगे जाऊँ । किसान ने कहा कि तुम 'उड़ चिड़ी, उड़‌ चिड़ी' कहते हुए आगे जाओ। किसान की बात मानकर वह इसी शब्द को दोहराता हुआ आगे बढ़ा।
आगे एक बहेलिया चिड़ि‌याँ फंसाने के लिए जाल बिछाए बैठा था। उसी समय रामाश्रय 'उड़‌ चिड़ी ,उड़ चिड़ी' कहता हुआ वहाँ पहुँचा तो चिड़ि‌याँ उसकी आवाज सुनकर उड़ गया। रामाश्रय को बहेलिया के गुस्से का सामना करना पड़ा। बहेलिया ने कहा," मैं चिड़ियाँ फंसाने के लिए जाल बिछाए बैठा हूँ और तुम 'उड़ चिड़ी, उड़‌ चिड़ी' कहकर उन्हें उड़ा दिया। रामाश्रय को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने बहेलिया से माँफी माँगा और पूछा कि आखिर मैं क्या कहता हुआ आगे जाऊँ। बहेलिया ने कहा कि तुम ' दौड़-दौड़ आ, बझ - बझ जा' कहता हुआ आगे जाओ। बहेलिया की बात मानकर वह इसी शब्द को दोहराता हुआ आगे बढ़ा।
आगे कुछ चोर एक गाँव में चोरी करने की योजना बना रहे थे तभी रामाश्रय वहाँ 'दौड़-दौड़ आ, बझ-बझ जा' कहता हुआ पहुँचा। चोर उसकी बात को सुनकर क्रोधित हो गये। वे बोले कि हम चोरी करने की योजना बना रहे हैं और तुम 'दौड़-दौड़ आ, बझ -बझ जा ' कहकर हमें पकड़‌वाना चाहता है। अगर तुम फिर से इस शब्द को दोहराया तो मार कर तेरी टाँग तोड़ दूंगा। चोर की बात सुनकर वह परेशान हो उठा और बोला कि आखिर मैं क्या बोलता हुआ आगे जाऊँ। चोर ने कहा कि तुम 'जल्दी - जल्दी आ , रख - रख जा' कहते हुए आगे जाओ। चोर की इसी बात को दोहराता हुआ वह आगे बढ़ा।


आगे कुछ लोग शव को लेकर श्मशान जा रहे थे तभी रामाश्रय वहाँ 'जल्दी-जल्दी आ, रख-रख जा' कहता हुआ पहुंचा। शव-यात्रा में शामिल लोग उसकी बात सुनकर उत्तेजित हो उठे। वे बोले तुम मनहूस की तरह 'जल्दी-जल्दी आ, रख-रख जा' क्यों कह रहे हो। इस तरह तो सारा गाँव ही खाली हो जाएगा। दुबारा ऐसी बात कही तो हम तुम्हें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। लोगों की बात सुनकर वह भयभीत हो गया। उसने डरते-डरते पूछा कि आखिर मैं क्या कहता हुआ आगे जाऊँ। लोगों ने कहा कि तुम 'ऐसा कहीं ना हो, ऐसा कहीं ना हो' कहते हुए आगे जाओ। रामाश्रय वही कहता हुआ आगे बढ़ा।


आगे एक गाँव में शादी हो रही थी। रामाश्रय जब 'ऐसा कहीं ना हो, ऐसा कहीं ना हो ' कहता हुआ वहाँ पहुंचा तो लोग उसकी बात सुनकर भड़क उठे। उन्होंने उसकी जमकर पिटाई कर दी। वे बोले कि इस शुभ अवसर पर तुम अशुभ बातें क्यों बोल रहे हो। अब यदि तुमने एक भी शब्द निकाला तो तुम्हारी खैर नहीं। रामाश्रय उनकी बातें सुनकर तिलमिला उठा और बोला कि आखिर मैं क्या कहता हुआ आगे जाऊँ। लोगों ने कहा कि तुम 'ऐसा सब जगह हो, ऐसा सब जगह हो' कहते हुए आगे जाओ। रामाश्रम इसी शब्द को दोहराता हुआ आगे बढ़ा।


आगे एक गाँव में आग लगी हुई थी। लोग इस आग को बुझाने का प्रयास कर रहे थे तभी रामाश्रय वहाँ 'ऐसा सब जगह हो, ऐसा सब जगह हो' कहता हुआ पहुंचा। गाँव के लोग उसकी बात सुनकर उत्तेजित हो गए। उन्होंने कहा कि खबरदार जो एक भी शब्द अपनी जुबान से निकाला । तुम चुपचाप यहाँ से चले जाओ।


रामाश्रय अपनी किस्मत को कोस रहा था। जगह-जगह की मार और फटकार से वह पूरी तरह टूट चुका था। उसने निश्चय किया कि मौन धारण करके चलने में ही भलाई है क्योंकि - " मौनेन कलहो नास्ति"। मौन रहने से कलह का नाश होता है। इस तरह रामाश्रय चुपचाप ही ससुराल के लिए रवाना हो गया।
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें किसी अन्य की बातों पर सहसा विश्वास नहीं कर लेनी चाहिए बल्कि उसकी बातों को अपने विवेक से परखना चाहिए। यदि ज्ञान-लाभ की बात हो तो उसे ग्रहण करना चाहिए अन्यथा उसका त्याग कर देना चाहिए। दूसरों की नकल करके या दूसरों की बातों में पड़‌कर मुसीबतों को गले लगाना कोई बुद्धिमत्ता नहीं। रामाश्रय दूसरों की बातों को आँख मूंदकर मानता चला गया इसीलिए नये-नये मुसीबतों का सामना करना पड़ा। यदि वह अपने विवेक का सहारा लिया होता तो निश्चय ही मुसीबतों से बच जाता। इसलिए जीवन में जो भी काम करना चाहिए वह सोंच - समझकर एवं अपने विवेक से करना चाहिए।




➡️ सुरेन्द्र कुमार रंजन

(स्वरचित एवं अप्रकाशित लघुकथा)
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