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भगवान का नीलवर्ण

भगवान का नीलवर्ण

जय प्रकाश कुवंर
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु, राम, कृष्ण और शिव के शरीर का रंग सांवला या नीलवर्ण बताया और दर्शाया गया है। नीलवर्ण का अर्थ होता है नीला रंग। इसके पीछे धार्मिक और कुछ सांस्कृतिक मान्यताएँ हैं।
श्री रामचरितमानस में भगवान ( राम ) के विषय में संत तुलसीदास जी ने लिखा है कि :-
नील सरोरुह नील मनि, नील नीरधर स्याम।
लाजहिं तन शोभा निरखि, कोटि कोटि सत काम।।
यानि भगवान के नीले कमल, नीलमणि और नीले जलयुक्त मेघ के समान कोमल, प्रकाशमय और सरस श्यामवर्ण ( चिन्मय) शरीर की शोभा को देखकर करोड़ों कामदेव भी लज्जित हो जाते हैं। इस प्रकार भगवान राम के शरीर को नीलवर्ण (सांवला ) बताया गया है।
कुछ कथाओं में यह बताया गया है कि भगवान कृष्ण का रंग पूतना राक्षसी के विष के कारण नीला हो गया था। वहीं यह भी कहा जाता है कि कालिया नाग के जहर के कारण उनके शरीर का रंग ऐसा हो गया था।
भगवान शिव जी का रंग नीला उनके गले में विष धारण करने के कारण हो गया था और उनका नाम ही नीलकंठ पड़ गया। वहीं कुछ कथाओं के अनुसार शिव जी का रंग नीला उनके अपने शरीर पर शवों का भस्म (राख ) लगाने के चलते हो गया।
इस संसार में यदि कोई सबसे विशाल वस्तु है तो वह असीम अंतरिक्ष है। यह धरती से देखने पर नीले रंग का दिखता है। आकाश अथवा अंतरिक्ष सर्वव्यापी है। यह सब कुछ आवरण करता है।
भगवान विष्णु, राम, कृष्ण और शिव कोई ऐतिहासिक पात्र नहीं हैं, बल्कि ये आकाश तत्व के सगुण रूप हैं और सर्वव्यापी हैं। इन देवताओं का व्यक्तित्व भी अंतरिक्ष के समान ही विशाल है। हम जब इन्हें अपने ज्ञान चक्षु से देखते हैं तो इनका रंग भी नीला मालूम पड़ता है। इनका सगुण रूप नीला अथवा वर्षा के श्याममेघ जैसा चित्रित होता है।
यह नीलवर्ण इन सभी देवताओं के शारीरिक रंग का ही नहीं बल्कि इनके दिव्य और शक्तिशाली स्वरूपों का प्रतीक है। यह भगवान की विशालता का प्रतीक है। 
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