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कुदरती आफत

कुदरती आफत

पुरा उतर भारत, बाढ़ सैलाब से जुझ रहा है।
आदमी असहाय है, उसे कुछ नहीं सुझ रहा है।।
अभी भी वक्त है, विराम दीजिये।
प्रकृति से छेड़छाड़ मत कीजिये ।।
नदी,जंगल ,पहाड़ सब स्वछंद हैं।
मतलब के लिए इनके आड़े मत आइये।।
पहाड़ काटकर,नदियों के किनारे को बांधकर।
शौकिया आशियाना मत बनाइये।।
आदमी हरकत करने से मानता नहीं है।
कुदरत का मिज़ाज कोई जानता नहीं है।।
एक समय ऐसा वक्त भी आता है।
कुदरती सैलाब सब कुछ बहा ले जाता है।।
आदमी पल भर में, जान माल खोता है।
जो बच जाता है, पछतावा कर रोता है।।
इंसान कितना जिद्दी है, कुदरत के सामने टिकता नहीं है।
बार बार हादसा होने पर भी, इंसान सबक सिखता नहीं है।। 
 जय प्रकाश कुवंर

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