कांग्रेस का 'भगवा आतंकवाद' और न्यायालय का निर्णय
डॉ राकेश कुमार आर्य
राष्ट्रीय जांच एजेंसी की एक विशेष अदालत ने मालेगांव बम विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। न्यायालय के इस आदेश के आने के बाद कांग्रेस और उसके नेताओं के द्वारा फैलाए गए इस भ्रम की भी पोल खुल गई है कि देश में कोई "भगवा आतंकवाद" नाम की चिड़िया भी रहती है। 17 वर्ष तक इस मामले के कथित आरोपियों को न्याय की प्रतीक्षा करनी पड़ी है। बहुत धीमी गति से न्याय इनके पास पहुंचा है अर्थात जीवन के 17 वर्ष अपने आप को दोष मुक्त कराने में इनको लग गए। विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ठीक कहते हैं कि "आज जिन कथित हिंदू आतंकवादियों के बारे में न्यायालय ने यह निर्णय दिया है, वास्तव में यह निर्णय कांग्रेस के गाल पर एक करारा तमाचा है। इस निर्णय के आने के पश्चात कांग्रेस को हाथ जोड़कर हिंदू समाज से माफी मांगनी चाहिए। क्योंकि उनकी स्टोरी झूठी सिद्ध हो चुकी है। "
मालेगांव विस्फोट में कुल 14 आरोपी थे। जिनमें से 7 पर मुकदमा चला। उनके नाम हैं - साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, श्रीकांत पुरोहित, सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय,समीर कुलकर्णी,अजय रहिरकर, सुधाकर धर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी। मालेगांव के इन आरोपियों पर आरोप लगाया गया था कि उनके द्वारा आरडीएक्स लाया गया और उसका प्रयोग किया गया, परंतु किसी भी आरोपी के घर में आरडीएक्स के होने के सबूत नहीं मिले। देश के लिए यह बहुत ही दुखद स्थिति है कि यहां पर हिंदू अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए यदि कान भी हिलाता है तो भी वह अपराधी हो जाता है।
दूसरे के अत्याचारों को झेले तो भी गलत है और अत्याचारों का प्रतिशोध करें तो भी गलत है। इसी प्रकार की स्थिति में हिंदू मुगल काल में जीता था। जब उसका पूर्ण रूपेण निशस्त्रीकरण कर दिया गया था। उसे हथियार रखने की अनुमति नहीं थी, यदि कोई मुस्लिम आगे से घोड़े पर चढ़कर आ रहा है तो हिंदू को अपने घोड़े से उतरना पड़ता था। पहले मुस्लिम को रास्ता देना पड़ता था। हिंदू अपने घरों में किसी की मृत्यु होने पर रुदन भी नहीं कर सकते थे। रामधारी सिंह दिनकर जी की पुस्तक "संस्कृति के चार अध्याय " से हमें इन तथ्यों की जानकारी होती है। स्वाधीन भारत में भी कांग्रेस के शासनकाल में न्यूनाधिक हिंदू की यही स्थिति बनी रही है। देश को अस्थिर करने में लगी शक्तियों के संकेत पर सोनिया गांधी सांप्रदायिक हिंसा निषेध अधिनियम लाकर हिंदू के दमन को कानूनी परिधान पहनाकर और भी तेज करने पर उतारू हो गई थीं। वह आज भी इसी पहले हैं भारतीय बाद में । जिस प्रकार मालेगांव मामले को तूल दिया गया, वह कांग्रेस की इसी प्रकार की मानसिकता को लागू करने के संकेत था । यदि समय पर सांप्रदायिक हिंसा निषेध अधिनियम को लेकर हिंदूवादी संगठन और राजनीतिक दल उठ खड़े न होते तो आज मालेगांव मामले के सातों अभियुक्तों को बहुत संभव था कि हम अपने बीच ही न पाते अर्थात उन्हें फांसी दे दी गई होती। तनिक सोचिए कि उसके बाद यह सिलसिला कहां जाकर रुकता ?
साध्वी प्रज्ञा सिंह के साथ क्या-क्या किया गया है अर्थात उन्हें किस-किस प्रकार की यातनाएं दी गई हैं,उन्हें सुनकर भी आत्मा कांप उठती है। स्वतंत्र भारत में कांग्रेस की सरकारों के समय में किए गए इस प्रकार के अत्याचारों ने मुगलों और अंग्रेजों के अत्याचारों की यादों को ताजा कर दिया है।
इन अभियुक्तों में से एक मेजर रमेश उपाध्याय जी के साथ कई बार बैठने का और बातचीत करने का अवसर मुझे मिला है। उनकी सादगी, उनकी देशभक्ति, हिंदुत्व के प्रति समर्पण और राष्ट्र के प्रति निष्ठा सराहनीय है। किसी भी दृष्टिकोण से यह नहीं लगता कि वे अपराधी हो सकते हैं। यही स्थिति अन्य 6 लोगों के बारे में भी कही जा सकती है । उन्होंने अपनी राष्ट्रभक्ति का प्रदर्शन किया या करते रहे हैं , यही उनका अपराध था और उस अपराध के लिए इतनी यातनाओं से उन्हें गुजरना पड़ेगा, ऐसा स्वतंत्र भारत में सोचा भी नहीं जा सकता था। इन सभी लोगों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत आरोप लगाए गए थे।
इस निर्णय के आने के उपरांत कांग्रेस के नेता मुंह दिखाने योग्य नहीं रहे हैं। इसके उपरांत भी बहुत निर्लज्जता के साथ कहे जा रहे हैं कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि देश में हिंदू आतंकवाद है। जबकि सच यह है कि कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति करते हुए और मुस्लिम तुष्टिकरण का खेल खेलते हुए भगवा आतंकवाद का हव्वा खड़ा करके अपनी सत्ता को चिरस्थाई बना देना चाहती थी। देश के लोगों को सोचना चाहिए कि अपनी सत्ता की भूख को मिटाने के लिए कांग्रेस कितने निम्न स्तर तक जा सकती थी या जा सकती है? कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह और शिंदे 'हिंदू आतंकवाद' की बात करते थे। सारे संसार के लोग यह भली प्रकार जानते हैं कि हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता । क्योंकि वह वेदों के मानवतावाद में विश्वास रखता है। इसके उपरांत भी कांग्रेस संसार भर के विद्वानों के इस विमर्श को झुठलाने पर उतारू थी।
एक अंग्रेजी पत्रिका ने 4 जुलाई को प्रेस नोट जारी किया था। इनमें कराची आधारित लश्करे तैयबा के आतंकी आरिफ 2009 के अंक में रक्षा विशेषज्ञ बी. रमन का लेख प्रकाशित हुआ। उस लेख से कांग्रेस की घृणित सोच का पता चलता है। उक्त रिपोर्ट के अंश यहाँ उद्धृत हैं, 'आरिफ कासमानी अन्य आतंकी संगठनों के साथ लश्करे तैयबा का मुख्य समन्वयकर्ता है और उसने लश्कर की आतंकी गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कासमानी ने लश्कर के साथ मिलकर आतंकी घटनाओं को अंजाम दिशा, जिनमें जुलाई 2006 में मुंबई और फरवरी 2007 में पानीपत में समझौता एक्सप्रेस में हुए बम धमाके शामिल हैं। सन् 2005 में लश्कर की ओर से कासमानी ने धन उगाहने का काम किया और भारत के कुख्यात अपराधी दाऊद इब्राहीम से जुटाए गए धन का उपयोग जुलाई 2006 में मुंबई की ट्रेनों में बम धमाकों में किया। कासमानी से अलकायदा को भी वित्तीय व अन्य मदद दी। कासमानी के सहयोग के लिए अलकायदा ने 2006 और 2007 के बम धमाकों के लिए आतंकी उपलब्ध कराए।'
इतने प्रमाणों के होने के उपरांत भी कांग्रेस के नेताओं को देश में भगवा आतंकवाद तो दिखाई दिया, परन्तु उनके मुंह पर इस्लामिक आतंकवाद कहने के लिए ताले पड़ गए।
(लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं )
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