महावाणी स्मरण सह काव्य गोष्ठी में गूँजा भक्ति, प्रेम और जीवन का स्वर

- निवास निराला निकेतन, प्रतिमास स्थल पर हुआ आयोजन
पटना। निवास निराला निकेतन, प्रतिमास स्थल पर आयोजित महावाणी स्मरण सह काव्य गोष्ठी में भक्ति, सौंदर्य और जीवन-संघर्ष की विविध छवियाँ उभरकर सामने आईं। कार्यक्रम की शुरुआत वरिष्ठ कवि अंजनी कुमार पाठक द्वारा आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के जीवन से जुड़े अनछुए प्रसंगों के संस्मरण से हुई, जिसने उपस्थित साहित्य प्रेमियों को भावविभोर कर दिया।
इसके पश्चात गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार सत्येंद्र कुमार 'सत्येन' ने की।
काव्य-पाठ की शुरुआत करते हुए अरुण कुमार 'तुलसी' ने अपनी कविता "शेष जीवन की व्यथा अब कौन हरे?" से कार्यक्रम का भावपूर्ण आगाज़ किया, जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा।
इसके बाद मंच पर विभिन्न विधाओं के कवियों ने अपनी रचनाओं से समां बाँधा—
अंजनी कुमार पाठक ने भावभक्ति से ओतप्रोत रचना "जय भोलेनाथ जय शिवशंकर" सुनाई।
साहित्यकार डॉ. हरिकिशोर सिंह ने "बसंत आ गया, खिली फूलों की कली" से ऋतु के सौंदर्य को शब्दों में पिरोया।
भोजपुरी गीतकार सत्येंद्र कुमार 'सत्येन' ने जनभावनाओं को छूती रचना "बाबा पूरा करिहें मनवा के आस" सुनाई।
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद नारायण मिश्र ने "यशोदा के प्यारे मोहन फिर एक बार आओ" से श्रोताओं को कृष्ण-भक्ति में डुबो दिया।
कथा लेखिका एवं कवयित्री डॉ. उषा किरण श्रीवास्तव ने अपनी रचना "हे भोले भंडारी, तेरी लीला अगम अपार है" के माध्यम से भक्ति रस की सरिता प्रवाहित की।
कवयित्री डॉ. संगीता सागर की रचना "बादलों के गांव में पानी प्यासा लौट आया" ने पर्यावरण और मानवीय पीड़ा की गूंज को स्वर दिया।
वरिष्ठ कवि दीनबंधु आज़ाद ने जीवन दर्शन से भरपूर रचना "जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है" सुनाकर आत्मबल का संदेश दिया।
वरिष्ठ शायर रामवृक्ष चकपुरी ने समाज को आईना दिखाती रचना "शांति का आईना दिखा खुद महासमर पर कवित्त करता" से श्रोताओं को सोचने पर विवश किया।
वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक भारती ने अपनी कविता "यूँ अकेले तेरा चलना तो क्या चलना?" के माध्यम से संबंधों और साथ के महत्व को रेखांकित किया।
कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ समाजसेवी मोहन प्रसाद सिन्हा ने सभी साहित्यकारों और श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया। यह गोष्ठी न केवल कवियों के भावनात्मक अभिव्यक्तियों की प्रस्तुति बनी, बल्कि समसामयिक और आध्यात्मिक मुद्दों पर चिंतन का भी माध्यम रही।
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