पुलिस और प्रशासन का कीजिए स्तुतिगान, नहीं तो जेल की कमान?

- पटना एसएसपी कार्तिकेय के. शर्मा के ‘चेतावनी बयान’ पर पत्रकार जगत में उबाल
रिपोर्ट: श्याम नाथ श्याम, वरिष्ठ पत्रकार
स्थान: पटना (बिहार)
तारीख: 21 जुलाई 2025
पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) कार्तिकेय के. शर्मा ने चंदन मिश्रा हत्याकांड से जुड़ी गलत अथवा अपुष्ट ख़बरें चलाने पर मीडिया संस्थानों के विरुद्ध "विधि सम्मत कार्रवाई" करने की चेतावनी दी है। प्रेस कॉन्फ़्रेंस में दिया गया यह बयान पत्रकार समुदाय के बड़े हिस्से को नागवार गुज़रा है। कई पत्रकार संगठनों ने इसे प्रेस की आज़ादी पर दबाव बनाने की कोशिश बताया है और राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री तथा पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) तक हस्तक्षेप की मांग की है।
17 जुलाई 2025 की सुबह पटना के पारस HMRI अस्पताल के आईसीयू में दाख़िल कुख्यात अपराधी (मर्डर कन्विक्ट) चंदन मिश्रा की सशस्त्र हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी। वारदात सीसीटीवी में दर्ज हुई और कुछ ही मिनटों में फुटेज सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। घटना ने बिहार की क़ानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
ताज़ा पुलिस कार्रवाइयों में मुख्य शूटर बताए जा रहे तौसीफ उर्फ़ ‘बादशाह’ सहित उसके तीन साथियों को कोलकाता से पकड़ा गया है; शेष आरोपियों की तलाश जारी है। पुलिस का कहना है कि हत्या की साज़िश तौसीफ के मौसेरे भाई नीशू (या निशू) खान के ठिकाने पर रची गई, जो पारस अस्पताल क्षेत्र के आसपास रहने वाला बताया जा रहा है।
एसएसपी ने क्या कहा?
पटना पुलिस मुख्यालय में आयोजित हालिया संवाददाता सम्मेलन में एसएसपी कार्तिकेय के. शर्मा ने दावा किया कि मीडिया के कुछ हिस्सों ने बिना पुष्टि के ऐसी ख़बरें चलाईं जिनसे चल रही जांच प्रभावित हुई। उन्होंने चेतावनी दी कि झूठी/अपुष्ट रिपोर्ट प्रकाशित या प्रसारित करने वाले मीडिया संस्थानों को नोटिस भेजा जाएगा और उन पर प्रावधानों के अनुरूप कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
“बिना पुष्टि की खबरें न चलाएँ; जांच पर असर पड़ता है। ज़रूरत हुई तो नोटिस जाएगा और जवाब माँगा जाएगा,”—एसएसपी (प्रेस ब्रीफिंग में)।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि अपुष्ट सूचनाएँ संदिग्धों को चेता सकती हैं, सबूतों को प्रभावित कर सकती हैं या गिरफ्तारी अभियानों को जोखिम में डाल सकती हैं।
पत्रकारों में नाराज़गी क्यों?
पत्रकारों का तर्क है कि सूचना संकलन की प्रक्रिया बहुआयामी होती है और प्रारंभिक रिपोर्टें अक्सर विकसित होती कहानी का हिस्सा होती हैं। पुलिस द्वारा "नोटिस" और "विधि सम्मत कार्रवाई" की भाषा का इस्तेमाल प्रेस पर डर का माहौल बना सकता है—विशेषतः तब जब राज्य में अपराध से जुड़े मामलों पर राजनीतिक दबाव भी सक्रिय हो।
कई पत्रकारों का कहना है कि यदि पुलिस तथ्यात्मक आपत्ति दर्ज करना चाहती है तो उसे समय पर सत्यापित सूचना, नियमित मीडिया ब्रीफिंग और स्पष्ट अद्यतन उपलब्ध कराना चाहिए—धमकी नहीं।
पत्रकार संगठनों की प्रतिक्रियाएँ
पत्रकार संगठनों व वरिष्ठ पत्रकारों से प्राप्त प्रतिक्रियाओं का संक्षेप:
- एस.एन. श्याम, पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ एवं वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर: "एसएसपी का बयान लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है। हम प्रेस की गरिमा पर हमला बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
- कुमार निशांत, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ (बिहार): "यदि प्रशासन पारदर्शिता रखे तो अफ़वाह कम होंगी; मीडिया को डराने के बजाय तथ्य साझा किए जाएँ।"
- अनमोल कुमार, प्रदेश अध्यक्ष, बिहार प्रेस मेंस यूनियन: "नोटिस की धमकी प्रेस पर अंकुश लगाने का प्रयास प्रतीत होती है।"
- राज किशोर सिंह, महासचिव, बिहार प्रेस मेंस यूनियन: "हम राज्यपाल व मुख्यमंत्री से लिखित शिकायत करेंगे।"
- सुधांशु कुमार सतीश, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट: "पुलिस को चाहिए कि वह केस डायरी लीक होने से रोके; पत्रकारों पर दोषारोपण न करे।"
इन संगठनों ने सामूहिक रूप से एसएसपी पर कार्रवाई (या कम-से-कम स्पष्टीकरण) की मांग करते हुए ज्ञापन तैयार करने का निर्णय लिया है।
कानून व प्रेस की स्वतंत्रता: संतुलन कैसे?
भारतीय क़ानून में ऐसा कोई सामान्य प्रावधान नहीं है जो हर अपुष्ट रिपोर्ट पर पत्रकार को तत्काल दंडित करे; हालाँकि दंड प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता, आपराधिक मानहानि, एवं आईटी अधिनियम की कुछ धाराएँ विशेष परिस्थितियों में लागू की जा सकती हैं—जैसे न्यायिक प्रक्रिया में बाधा, शत्रुता भड़काना, या दुष्प्रचार से शांति भंग होना। प्रायः पुलिस ‘कानूनी कार्रवाई’ की चेतावनी देकर सावधानी की अपील करती है, पर यह तभी न्यायसंगत है जब वह ठोस रूप से गलत रिपोर्टिंग और उसके दुष्प्रभाव को दर्शाए।
प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया (PCI) ने कई मौकों पर मीडिया को सलाह दी है कि जांचाधीन आपराधिक मामलों की रिपोर्टिंग करते समय अटकलों, गॉसिप या ‘मीडिया ट्रायल’ से बचें; अपुष्ट सूचनाएँ जांच व न्यायिक प्रक्रिया पर अनावश्यक दबाव डालती हैं। (PCI की सलाह सामान्य है—किसी एक राज्य या मामले तक सीमित नहीं।)
क्या चाहती है मीडिया बिरादरी?
पत्रकार समूहों ने निम्न व्यावहारिक माँगें रखी हैं:
नियमित आधिकारिक ब्रीफिंग शेड्यूल – प्रतिदिन/निर्धारित अंतराल पर केस अद्यतन।
तथ्य-जाँच हेल्पलाइन या व्हाट्सऐप नंबर – रिपोर्ट प्रकाशित करने से पहले त्वरित सत्यापन हेतु।
स्पष्टीकरण प्रोटोकॉल – यदि कोई रिपोर्ट तथ्यात्मक रूप से गलत पाई जाती है तो पुलिस लिखित रूप में विरोध-पत्र भेजे; पत्रकार को उत्तर व सुधार का अवसर मिले।
संयुक्त मीडिया-पुलिस संवाद समिति – संवेदनशील मामलों में ‘डूज़ एंड डोंट्स’ पर सहमति।
धमकी की भाषा से परहेज़ – ‘कानूनी कार्रवाई’ की जगह ‘तथ्यपरक सहयोग’ का संदेश।
पत्रकार संगठनों ने घोषणा की है कि वे शीघ्र ही राज्यपाल, मुख्यमंत्री और डीजीपी को ज्ञापन सौंपेंगे। यदि उचित प्रतिक्रिया नहीं मिली तो चरणबद्ध आंदोलन—काला बिल्ला धारण, सांकेतिक बहिष्कार, धरना—पर विचार किया जाएगा। उधर पुलिस विभाग अंदरूनी समीक्षा कर रहा है कि किस प्रकार संवेदनशील जांचों के दौरान भ्रामक समाचारों से निपटा जाए।
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