कलियुग निवास और प्रभाव
जय प्रकाश कुवंर
द्वापर युग के अंत में जब भगवान श्री कृष्ण और पांचो पांडवों ने अपने शरीर और इस धरती का त्याग कर दिया उसके बाद अर्जुन का पोता परीक्षित हस्तिनापुर का राजा बना। भगवान श्री कृष्ण के इस धरती को त्याग करते ही युग परिवर्तन हुआ और कलियुग आ गया। भगवान श्री कृष्ण ने अपने समय में अपने वंशजों सहित सभी दुष्टों ,आतताइयों और राक्षसों का विनाश कर दिया था। लेकिन उनके धरती छोड़ते ही कलियुग नाम के राक्षसी युग का प्रादुर्भाव हो गया। चूंकि उस समय परीक्षित राजा राज कर रहे थे, अतः कलियुग रूपी राक्षस ने उनसे धरती पर अपने रहने का निवास स्थान मांगा। राजा परीक्षित ने कलियुग से कहा कि उसे धरती पर रहने के लिए पांच स्थान की अनुमति दी जाती है, जहाँ वह रह सकता है। और वो पांच स्थान उन्होंने ये दिये :- १ . जहाँ जुआ खेला जाता हो २ . जहाँ शराब पी जाती हो ३ . जहाँ हिंसा होती हो ४ . जहाँ दूसरी स्त्री को भोगने की इच्छा हो ५ . स्वर्ण में उपरोक्त इन सभी जगहों पर लोभ, मद, मोह, क्रोध,काम, असत्य , निर्दयता, मदांधता और बेहोशी रहती है, अतः तुम इनके साथ ही निवास करो। राजा परीक्षित ने कलियुग रूपी राक्षस को जो पांच स्थान रहने को दिया था उनमें एक स्वर्ण भी था। अब चूंकि राजा परीक्षित , जो बहुत ही न्यायप्रिय और अपनी प्रजा के प्रति निष्ठावान राजा थे, लेकिन उनके सिर पर स्वर्ण मुकुट विराजमान था, इसलिए कलियुग ने उसमें प्रवेश कर लिया। कलियुग के उनके सिर पर सवार होते ही अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया। एक बार राजा परीक्षित जंगल में शिकार करने के लिए गये। वहाँ शमीक ऋषि आंखें बंद कर मौन अवस्था में ध्यान कर रहे थे। राजा परीक्षित प्यासे थे और उन्होंने ऋषि शमीक के पास जाकर पीने के लिए पानी मांगा। चूंकि ऋषि आंखों को बंद किये ध्यान में थे इसलिए उन्होंने परीक्षित के बात का कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित के सिर पर मुकुट में विराजमान कलियुग के प्रभाव से राजा ने इसे अपना अपमान समझा। राजा परीक्षित ने क्रोध में आकर ऋषि शमीक के गले में मरा हुआ एक सांप लपेट दिया और चले गए। इस बात का पता जब ऋषि शमीक के पुत्र श्रृंगी ऋषि को चला, तो उसने इसे अपने पिता का अपमान समझकर राजा परीक्षित को यह शाप दे दिया कि राजा परीक्षित ने मेरे ध्यानमग्न पिता के गले में मरा हुआ सांप लपेटा है, अतः सात दिन में नागराज तक्षक उन्हें डंस लेगा और उनकी मृत्यु हो जाएगी। अपने पुत्र द्वारा राजा परीक्षित को दिये गये शाप की बात सुनकर ऋषि शमीक बहुत दुखी हुए। वहीं जब राजा परीक्षित ने घर आकर जब अपने सिर से मुकुट उतारा और कलियुग का प्रभाव उनके शरीर से खत्म होने पर उन्होंने महसूस किया कि उनसे बहुत बड़ा पाप हुआ है और ऋषि पुत्र ने इस तरह उन्हें शाप दिया है, तो उन्हें लगा कि ऋषि कुमार ने उनके उपर बहुत बड़ा उपकार किया है। उनके द्वारा किए गए पाप के लिए उन्हें दंड मिलना ही चाहिए। राजा परीक्षित ने अपने जीवन के शेष सात दिनों को ज्ञान प्राप्ति और भगवद्भक्ति में व्यतीत करने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने पुत्र जनमेजय का राज्याभिषेक कर दिया और समस्त राजसी वस्त्राभूषणों आदि का त्याग कर केवल चीर वस्त्र धारण कर गंगा तट पर बैठ गए और अपनी समस्त आसक्तियों को त्याग कर भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में स्वंय को लीन कर लिया। ऋषि पुत्र के शाप के कारण सात दिनों के बाद नागराज तक्षक ने राजा परीक्षित को डंस लिया और उनकी मृत्यु हो गयी। राजा परीक्षित के मृत्यु उपरांत कलियुग ने अपना पूर्ण प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया। वर्तमान में कलियुग पृथ्वी पर अपने पूर्ण आवेग में चारों तरफ फैला हुआ है और विशेष तौर पर उसका प्रभाव राजा परीक्षित द्वारा उसको दिये गये उपरोक्त पांच स्थानों पर तो चरम सीमा पर दिख रहा है ।
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