चन्द्रशेखर
डॉ अवधेश कुमार अवधअंग्रेजों की न्याय व्यवस्था में शेखर ललकारा था।
आजादी को पिता और भारत को मातु पुकारा था।।
नंगे तन पर कोड़े दर कोड़े को सह चिल्लाया था।
पुन: फिरंगी-हाथ न आने का प्रण वह दुहराया था।।
अंग्रेजी सेना उसकी परछाईं से भय खाती थी।
आजादी के इस दीवाने से थर-थर थर्राती थी।।
भगत सिंह का कैदी होना, उसको तनिक न भाया था।
क्रांति- ज्वाल ठंडी पड़ने की सोच बहुत घबराया था।।
गाँधी-नेहरू की चौखट पर उसने फेरा डाला था।
महामना का साथ मिला था किन्तु न दिखा उजाला था।।
दिल में मायूसी लेकर वह चला उदासी छाई थी।
पीछे से अंग्रेजी सेना उसे पकड़ने आई थी।
अल्फ्रेड पार्क में घिरा शेर अभिमन्यु सरीखा बोला था।
भारत माता की जय कह पिस्टल का मुखड़ा खोला था।।
लड़ते-लडते वीर वहीं माँ की गोदी में सोया था।
अंग्रेजों से नहीं बल्कि अपनों से जीवन खोया था।।
विलायती सत्ता खुश थी एवं खुश कुछ नेता भी थे।
चला गया वह सिंह और इस कारण कुछ जेता भी थे।।
धन्य-धन्य भारत माता है जिसको शेखर सा बेटा।
माता के हित में जीया वह, माता के हित में लेटा।।
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