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ईश्वर और जीव

ईश्वर और जीव

भगवान को ईश्वर, परमेश्वर, प्रभु, परब्रह्म, परमात्मा, जगदीश और नाथ आदि नामों से जाना जाता है। इतना ही नहीं, इसके अलावा भी भगवान को और भी अनेक नामों से पुकारा जाता है। भगवान का अर्थ है जो सर्वोच्च शक्ति, ज्ञान और सभी गुणों से युक्त हो।
भगवान शब्द कहने में भ+ग+व+अ+न, ये पांच अक्षर आते हैं। भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि और न से नीर बनता है। इस तरह हम सभी इन पांच तत्वों अर्थात भगवान से घीरे हुए हैं और उनके द्वारा संरक्षित एवं संचालित हैं । जीवों का शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से निर्मित है, जो पुनः मृत्यु उपरांत इन्हीं में विलिन हो जाता है। ये पांचों तत्व सर्वोच्च शक्ति के द्योतक हैं।
हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि :-
क्षिति जल पावक गगन समीरा।
पंच तत्व रचित यह अधम शरीरा।।
ईश्वर अर्थात प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए इन पांच तत्वों में संतुलन परम आवश्यक है।
भगवान अपने आप में एक मूल शब्द है। इसका कोई निश्चित संधि विच्छेद नहीं है। कुछ लोगों के मतानुसार अगर इसे तोड़ा भी जाता है, तो इसमें दो शब्द बनते हैं। भगवान यानि भग+वान
बनता है। शाब्दिक रूप से भग का अर्थ होता है ऐश्वर्य, वीर्य, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य। और वान शब्द का अर्थ होता है वाला अथवा युक्त। इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान शब्द का अर्थ होता है जो इन छह गुणों से युक्त है।
भगवान यानि ईश्वर अविनाशी हैं। उनका रूप बदलता है अर्थात वे अनेक रूपों में अवतार लेते हैं। जीव यानि आत्मा का भी अंत नहीं होता है। आत्मा अमर है। शरीर नश्वर है। शरीर आत्मा का साधन मात्र है। प्रत्येक प्राणी यानि जीव ईश्वर का ही एक अंश है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में इसीलिए ऐसा कहा गया है कि :-
" ईश्वर अंश जीव अविनाशी "
पुनः भगवान का अपने बारे में यह भी कहना है, जैसा धर्म शास्त्रों में वर्णित है :-
" एको अहम् द्वितीयो नास्ति "
यानि उनका कथन है कि मैं ही एक मात्र परब्रह्म परमात्मा हूँ। मेरे समान या मेरे जैसा कोई दूसरा और नहीं है। मेरे से ही सभी जीवों की उत्पत्ति है।
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार एक समय मनु और उनकी पत्नी सतरुपा ने भगवान की तपस्या कर भगवान के जैसा ही पुत्र चाहा था। तब भगवान ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया था कि उनकी इच्छा पूरी होगी। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मैं तो एक ही हूँ, मेरे जैसा दूसरा तो कोई है ही नहीं। फिर मैं दूसरा कहाँ से लाउंगा। इसलिए आपलोगों की इच्छा पूर्ण करने के लिए स्वयं मैं ही आपलोगों के पुत्र के रूप में जन्म लूंगा।
परिवर्तित समय में जब मनु सतरुपा ने अयोध्या के राजा दशरथ और उनकी पत्नी कौशल्या के रूप में जन्म धारण किया था तब भगवान ने अपने उनको दिये गये वचन के अनुसार उनके पुत्र राम के रूप में उनके धर जन्म लिया था। जय प्रकाश कुवंर
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