"कष्ट का आलोक"
मित्रों कष्ट जीवन की उस अपरिहार्य कथा का अध्याय है, जो आत्मा को भीतर से तपाकर उसे बल, धैर्य एवं साहस की दीप्ति से आलोकित करता है। यह वही अग्निपथ है, जहाँ से गुजरकर आत्मा अपने उच्चतर स्वरूप को पहचानती है। जीवन के भटकाव, भ्रम एवं अनिश्चितताएँ केवल बाह्य दृष्टि से विक्षिप्त प्रतीत होते हैं; किंतु वास्तव में वे ही वे अनजाने मार्ग हैं, जो हमें आत्मबोध, आत्मस्वीकृति एवं आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाते हैं।
गहन पीड़ा केवल शारीरिक या मानसिक अनुभव नहीं है, बल्कि वह एक गूढ़ द्वार है, जिसके पार अंतरात्मा की शांति, मौन की शक्ति एवं परम सत्य की झलक मिलती है। जिस क्षण हम दुख को शत्रु नहीं, गुरु समझकर स्वीकारते हैं, उसी क्षण जीवन एक साधना बन जाता है।
अतः अपने अंतःकरण के उस प्रकाश पर स्थिर रहो, जो सदा निर्विकार, शांत एवं जाग्रत है। बाहरी परिस्थितियाँ चाहे जैसी हों, यदि दृष्टि भीतर की ओर स्थिर हो — तो जीवन एक समर्पण, एक श्रद्धा एवं एक स्वीकारोक्ति का सुंदर संगम बन जाता है। वहीं से सच्ची मुक्ति एवं शांति का प्रशस्त होता है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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