दिल का बेहाल
तेरे हुस्न के मैंने प्रियेबहुत किस्से सुने है।
जब हँसती हो तुम तो
फूल खिल उठते है।
तुम्हारी आँखे भी तो
कयामत खूब ढाती है।
जब चलती हो सड़क पर
तो सड़क भी शर्मती है।।
नहाकर जब तुम आती हो
महक उठता तब घर।
सुखाती हो जब बालों को
तो लगता है घटाये घिर आई।
और जब पड़ती पानी की बूंदे
तो मेरा दिल मचल उठता।
तुम्हारी ये ही अदायें तो
मुझे घायल करती है।।
कमर के ऊपर जो तुमने
पहन रखी है कर्धोनी।
और माथे पर बिंदिया भी
माथे को चमका रही है।
और हाथो की चूड़ीयों की
खनक दिलको बहला रही।
लचकती बल खाती चाल
दिलों की धड़कने बड़ा रही है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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