मां वन देवी का मंदिर : आस्था, इतिहास और शाकद्वीपीय परंपरा का संगम

भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर में ऐसे अनेक स्थल हैं, जो इतिहास, श्रद्धा और परंपरा की त्रिवेणी के प्रतीक हैं। बिहार की राजधानी पटना से कुछ दूर लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर बिहटा प्रखंड के राघोपुर कंचनपुर गांव में स्थित मां वन देवी मंदिर भी एक ऐसा ही पवित्र स्थल है, जहां भक्तों की आस्था दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसका संबंध विंध्याचल की अधिष्ठात्री मां विंध्यवासिनी से जुड़ा है, और इसकी स्थापना कोई साधारण नहीं, बल्कि शाकद्वीपीय ब्राह्मण कुल में जन्मे एक तपस्वी और विद्वान पंडित विद्यानंद मिश्र द्वारा लगभग 400 वर्ष पूर्व की गई थी।
शाकद्वीपीय ब्राह्मण भारतीय ब्राह्मण समुदाय का एक अत्यंत प्राचीन और विद्वान वर्ग है। मान्यता है कि ये ब्राह्मण शाकद्वीप नामक क्षेत्र से भारत लायेगये थे। ये विशेष रूप से सूर्योपासक, यज्ञीय विद्या, ज्योतिष, आयुर्वेद, और वेदाध्ययन में पारंगत थे। इनकी भाषा, वेशभूषा, जीवनशैली और संस्कार विशेष होते थे, जो इन्हें अन्य ब्राह्मणों से विशिष्ट बनाते थे।
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों ने भारत में अनेक तीर्थस्थलों की स्थापना की, अनगिनत मंदिरों का निर्माण कराया और धार्मिक संस्कारों को जन-जन तक पहुंचाया। इन्हीं में से एक थे — पंडित विद्यानंद मिश्र, जिनकी आध्यात्मिक दृष्टि, साधना और संकल्प ने मां वन देवी मंदिर की स्थापना की।
शाकद्वीपीय ब्राह्मण अपनी तपस्या, वेदज्ञान और अध्यात्मिक साधना के लिए विख्यात रहे हैं। इनकी परंपरा में देवी आराधना का विशेष स्थान रहा है। ऐसी ही परंपरा के वाहक पंडित विद्यानंद मिश्र, जिन्होंने विंध्याचल (वर्तमान उत्तर प्रदेश) से मां विंध्यवासिनी का पिंड स्वरूप लाकर इस स्थान पर उसकी स्थापना की।
यह कार्य केवल स्थापना का नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र को दिव्यता से ओत-प्रोत करने वाला ऐतिहासिक और धार्मिक कार्य था। माना जाता है कि मां विंध्यवासिनी के इस स्वरूप को वन क्षेत्र में स्थापित करने के कारण ही इनका नाम मां वन देवी पड़ा।
मंदिर की वर्तमान स्थिति और श्रद्धालुओं की आस्था:
मां वन देवी का यह मंदिर पटना से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर बिहटा प्रखंड के राघोपुर कंचनपुर गांव में मां वन देवी का महाधाम है। नवरात्र के मौके पर अलग-अलग जिलों से श्रद्धालु यहां पूजा करने आते हैं जो आज श्रद्धा का प्रमुख केंद्र बन चुका है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। विशेष रूप से नवरात्र, दुर्गा अष्टमी, रामनवमी और अन्य शक्ति पर्वों पर यहाँ भारी भीड़ उमड़ती है।
पुजारी पवन मिश्र और ॐ मिश्र इस मंदिर में वर्षों से सेवा में रत हैं और उन्होंने मंदिर की परंपरा, पूजन-विधि और मान्यताओं के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पुजारीगण बताते हैं कि यह कोई सामान्य मंदिर नहीं है, बल्कि यह शक्ति की जीवंत अनुभूति कराने वाला सिद्धपीठ है, जहाँ मां स्वयं भक्तों को दर्शन देती हैं।
महिलाओं की भूमिका: श्रद्धा से सेवा तक
मंदिर के विकास और भव्यता में महिलाओं की भूमिका अत्यंत सराहनीय रही है। राधा रानी मिश्र, जिनका नाम श्रद्धा, समर्पण और सामाजिक चेतना का प्रतीक है, ने इस मंदिर के पुनर्निर्माण और सुविधाओं के विस्तार में विशेष भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल भक्तों के लिए विश्राम स्थल और जल की व्यवस्था करवाई, बल्कि मंदिर परिसर को स्वच्छ और सुंदर बनाए रखने हेतु कई अभियान भी चलाए।
न्याय और पत्रकारिता जगत से जुड़ी आस्था की मिसालें:
यह मंदिर केवल ग्रामीण या पारंपरिक आस्थावानों का केंद्र नहीं रहा, बल्कि पटना उच्च न्यायालय की अधिवक्ता एवं एडवोकेट एसोसिएशन की अध्यक्ष श्रीमती छाया मिश्र जैसी प्रतिष्ठित हस्तियां भी इसकी गहरी श्रद्धालु हैं। वे कहती हैं – "यह कोई ईंट और पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि आत्मा की शांति का केंद्र है, जहां आकर न्याय के मार्ग में भी स्पष्टता मिलती है।" वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्र भी मां वन देवी के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हुए कहते हैं – "इस मंदिर की ऊर्जा मन को सकारात्मकता से भर देती है, और यह स्थान अध्यात्मिक पत्रकारिता का भी एक प्रेरणास्रोत बन सकता है।"
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