Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

घन बरसे चहूॅं ओर

घन बरसे चहूॅं ओर

बिहार तरसे बरसा हेतु ,
घन बरसे है चहूॅं ओर ।
घन घना घन घन बरसे ,
पवन उड़ाय दूजे छोर ।।
विचलित हो कृषक मन ,
कैसे क़ृषि कार्य बढ़ाऊॅं ।
वर्षा बिन पड़ा है सूखा ,
कैसे खेत हल चलाऊॅं ।।
गरज रहा बादल यहाॅं ,
बरस रहा है कहीं और ।
का वर्षा ये कृषि सुखाने ,
अकाल की बारी ठौर ।।
बरसा बरसा तरस रहे हैं ,
बरसा नहीं बरस रहे हैं ।
हम बैठे पड़े बारिश हेतु ,
अन्यत्र जन सरस रहे हैं ।।




पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ