वाणी ही कहानी है
मानव ऐसा तू प्राणी है ,वाणी ही तेरा पाणि है ,
लिखते पढ़ते जुबानी हैं ,
तेरा वाणी ही कहानी है ।
वाणी का मोल समझो ,
वाणी है अनमोल समझो ,
वाणी स्वयं में परिपूरण ,
वाणी खाली खोल न समझो ।
संस्कृति जीवन की रानी है ,
किंतु मानव ये अभिमानी है ,
वाणी ही ज्ञानी अज्ञानी है ,
तेरी वाणी तेरी कहानी है ।
सृष्टि में जीवन पाया पावन ,
जीवन किया स्वयं अपावन ,
लोभ क्रोध ईर्ष्या पालकर ,
जीवन ये जीवन में नशावन ।
मानव करता मनमानी है ,
तू नादान या अभिमानी है ,
सोच सोचकर बढ़ा कदम ,
तेरी वाणी तेरी कहानी है ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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