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समय का फेर

समय का फेर

जय प्रकाश कुवंर
कुछ बुझाते नइखे,
क‌इसन जमाना आ ग‌इल।
सब नेकी क‌इल,
कुंआ में फेंका ग‌इल।।
अपने धोती फटल पहन,
नया सब के पहिनवनी।
धूप में आपन देह जला के,
छांव में सबके बैठवनी।।
वासी रोटी अपने खाके,
ताजा सबके खिअवनी।
अपने रोज मर मर के भी,
सब लोग के जिअवनी।।
बैल जब बुढ़ा भइल तब,
लेहन भुसा ओरा ग‌इल।
नाथ पगहा काट के,
बेलावे के दिन आ ग‌इल।।
नीमन बेयार जब बहे लागल,
सब केहू भंगुआ ग‌इल।
घर भर के लोग के हिस्सा,
कुछ ही आदमी खा ग‌इल।।
कुछ बुझाते नइखे,
क‌इसन जमाना आ ग‌इल।।
सब नेकी क‌इल,
कुंआ में फेंका ग‌इल।। 
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