आध्यात्मिक विरासत और सामाजिक समरसता है तुलसी जयंती
जहानाबाद । संत तुलसीदास जयंती के अवसर पर साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने गोस्वामी तुलसीदास के योगदान के विशेष महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने रेखांकित किया कि तुलसी जयंती केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी अमूल्य आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है। पाठक ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी कालजयी रचनाओं, विशेषकर 'रामचरितमानस' और 'हनुमान चालीसा', के माध्यम से समाज को एक सुदृढ़ दिशा प्रदान की। इन ग्रंथों ने न केवल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चतुर्वर्ग पुरुषार्थों का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि आध्यात्मिक, सामाजिक, शैक्षणिक विकास, भाईचारे और समन्वय का भी प्रबल संदेश दिया। यह उनका अद्वितीय योगदान है कि उन्होंने जनमानस की भाषा अवधी में राम कथा को घर-घर पहुँचाया, जिससे आम लोगों को भी धर्म और नैतिकता के गहरे सिद्धांतों को समझने का अवसर मिला। उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि तुलसीदास का साहित्य केवल भक्ति और आध्यात्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सामाजिक समरसता का भी अनुपम कोष है। 'रामचरितमानस' में वर्णित आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति और आदर्श राजा के चरित्रों के माध्यम से तुलसीदास ने मर्यादा और नैतिकता का ऐसा पाठ पढ़ाया जो सदियों बाद भी प्रासंगिक है। हनुमान चालीसा के माध्यम से उन्होंने निष्ठा, शक्ति और सेवाभाव का संदेश दिया, जो आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरणा देता है। पाठक ने कहा कि तुलसीदास ने अपने साहित्य के माध्यम से समाज में व्याप्त विषमताओं को दूर करने और विभिन्न वर्गों के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया। उनका दर्शन हमें सिखाता है कि किस प्रकार आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारियों का भी निर्वहन किया जाए। इस प्रकार, तुलसीदास जयंती हमें न केवल एक महान संत को याद करने का अवसर देती है, बल्कि उनके शाश्वत संदेशों को अपने जीवन में उतारने की प्रेरणा भी देती है, जो वर्तमान समय में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
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