"संबंधों की असली परीक्षा उत्कर्ष में”
मित्रता एवं सच्चे संबंधों की वास्तविक कसौटी केवल दुःख-संक्रमण में सहानुभूति एवं सहयोग देने तक सीमित नहीं होती। संकट में सहारा बनना तो किसी हद तक सहज मानवीय स्वभाव का स्वाभाविक उद्गार होता है। परंतु किसी के उत्कर्ष, उसकी समृद्धि, कीर्ति एवं प्रशंसा के प्रसंग में निष्कलुष हर्ष का अनुभव करना, हृदय में ईर्ष्या अथवा द्वेष की किंचित भी छाया न आने देना, एवं उसकी सफलता को अपनी प्रसन्नता का विषय बनाना—यही वह गहन मूल्यांकन है, जिसमें संबंधों की सच्चाई एवं आत्मीयता स्पष्ट होती है।
जिस प्रकार धैर्य का असली परीक्षण विपत्ति की आग में होता है, उसी प्रकार मित्रता की निर्मलता का साक्षात्कार किसी के उत्कर्ष की उजली रोशनी में ही संभव है। क्योंकि मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति यह भी होती है कि वह दूसरे के उत्थान में स्वयं के बौने हो जाने का भय अनुभव करने लगे। अतः जो व्यक्ति परायों की उपलब्धियों को आत्मीयता से गले लगाता है, एवं उसमें अपने अहं को लिप्त नहीं होने देता, वही सच्चे अर्थों में उदात्त हृदय, व्यापक दृष्टि एवं प्रामाणिक संबंध का अधिकारी होता है।
इसलिए यह कहा जा सकता है कि संकट में साथ निभाना कर्तव्य-बोध की परीक्षा है, परंतु उत्कर्ष में समभाव रखना आत्मबोध की चरम परीक्षा है। जो इस कसौटी पर खरा उतर सके, वही सच्चा मित्र, सच्चा संबंधी कहलाता है।"
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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