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भरल कठौती इंजोरिआ आके पसरल हौ ।

भरल कठौती इंजोरिआ आके पसरल हौ ।

डॉ रामकृष्ण मिश्र

भरल कठौती इंजोरिआ आके पसरल हौ ।
चान हमर छानी पर अनहिंसके उतरल हौ।।


कान ओड़ ले सुन रहली हे सीटी के आवाज
मन मन्दिर में लगे आरती इंजोरिआ उतरल हौ।


पछिला कहनी करनी के सब भाव उपह गेलो
असरा में जेकर हिरदा दूरे से ससरल हौ।।।।


कौआ चील मगन मन‌ विचरे आफत में गवैया
अखशी तो अदमी के नीमन चेहरा उतरल हौ।।


सुनली ढोर सभेे अब कातो पागुर छोड़ रहल

कुर्सी सभे जौर होके बेसी मन से संवरल हौ।


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