"स्वयं का प्रबंधन : विजय का सत्य मार्ग"
मित्रों जब हम परिस्थितियों को संभालने का प्रयास करते हैं, तो हम बाहर की दुनिया के नियंत्रण की आकांक्षा करते हैं — उस पर जिसका स्वभाव ही परिवर्तन है। यदि हमारा सुख या शांति बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर है तो जीवन भर अशांत रहना अपरिहार्य है।
वास्तविक साधना इस बात में है कि हम अपने स्वभाव को साधें, अपने मन को प्रशिक्षित करें। क्योंकि बाहरी हालात चाहे जैसे हों, यदि हमारा मन स्थिर है, अंतःकरण शांत है, तो कोई भी तूफ़ान हमें विचलित नहीं कर सकता।
कर्म हमारा अधिकार है, परिणाम नहीं। परिस्थिति हमारे वश में नहीं, स्वयं पर अधिकार ही हमारा सबसे बड़ा बल है। यह विचार एक आत्मिक उद्घोष है — संसार को जीतने की नहीं, स्वयं को जीतने की साधना करो, क्योंकि जिसने स्वयं को साध लिया, उसके लिए संसार स्वतः सरल हो जाता है।
जिस दिन हम यह समझ लेंगे कि “संसार को बदलना मेरा कार्य नहीं, स्वयं को सँवारना मेरा धर्म है,” उस दिन से जीवन में स्थायी शांति एवं सत्य विजय का प्रारम्भ होगा।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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