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सुख-समृद्धि और सफलता का द्योतक गणेश जी

सुख-समृद्धि और सफलता का द्योतक गणेश जी

सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म के गणेश पुराण , मुद्गल पुराण में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना गया है, और उनके अनेक रूपों में से श्वेतार्क गणेश का विशेष स्थान है। यह चमत्कारी स्वरूप सफेद आंकड़े के पौधे की जड़ से प्राकृतिक रूप से प्रकट होता है, और तंत्र-मंत्र के साथ-साथ सामान्य पूजा पद्धतियों में भी इसका अत्यधिक महत्व है। मान्यता है कि श्वेतार्क गणेश की उपासना से घर में सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, सौभाग्य और सफलता का वास होता है।श्वेतार्क गणेश का शाब्दिक अर्थ है 'सफेद आक के गणेश'। आक, जिसे आंकड़ा भी कहते हैं, एक सामान्य पौधा है जिसके फूल शिवलिंग पर भी चढ़ाए जाते हैं। हालांकि, श्वेतार्क गणेश का निर्माण सफेद आंकड़े की दुर्लभ प्रजाति की जड़ में होता है। इस पौधे की पहचान इसके सफेद फूलों से होती है। वर्षों की अवधि में, इस सफेद आंकड़े की जड़ में भगवान गणेश के शरीर, भुजाओं और सूंड जैसी आकृतियाँ स्वाभाविक रूप से विकसित होती हैं, जो इनके प्राकृतिक और चमत्कारी स्वरूप का प्रमाण है। बाजार में पूजन सामग्री की दुकानों पर भी यह प्रतिमा उपलब्ध होती है। आंकड़े की जड़ प्राप्त होने पर, इसे कुछ दिनों तक पानी में भिगोकर बाहरी परतों को हटाया जाता है, जिसके बाद गणेशजी की आकृति स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगती है।
श्वेतार्क गणेश को प्राचीन काल से ही अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार:
धन और समृद्धि: श्वेतार्क गणेश की प्रतिमा को घर या तिजोरी में रखने से स्थाई लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और धन-धान्य की कमी नहीं रहती।सुख-सौभाग्य: इनकी नियमित पूजा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परिवार में सौभाग्य का आगमन होता है।रिद्धि-सिद्धि: घर में श्वेतार्क गणेश की उपस्थिति से रिद्धि-सिद्धि की कृपा प्राप्त होती है, जिससे सभी कार्यों में लाभ और सफलता मिलती है। शत्रु भय समाप्ति: तंत्र शास्त्र के अनुसार, इनकी पूजा से शत्रु भय समाप्त होता है और नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं।रोग मुक्ति और परेशानियाँ दूर: जिस परिवार में श्वेतार्क गणेश की नियमित पूजा होती है, वहाँ दरिद्रता, रोग और परेशानियाँ वास नहीं करतीं।सफेद आंकड़े के हर पौधे की जड़ में गणेश की सूंड जैसा आकार रहता है। इसकी जड़ के तने में गणेशजी के शरीर, आस-पास की शाखाओं में भुजाएं और सूंड जैसी आकृति दिखाई देती है। कुछ पौधों की जड़ में बैठे हुए गणेश की मूर्ति जैसी भी दिखाई देती है।पुराने समय से ही पीपल, आंवला, वट वृक्ष जैसे कई पेड़-पौधों की पूजा की जाती रही है। शास्त्रों के अनुसार बिल्व के वृक्ष में शिव का वास होता है और आंकड़े के पौधे में श्रीगणेश का वास होता है। आंकड़े की जड़ में दिखाई देने वाली श्रीगणेश की आकृति इस बात का प्रमाण है।
सफेद आक को कल्प वृक्ष की तरह वरदायक वृक्ष माना गया है। श्रद्धापूर्वक नतमस्तक होकर इस पौधे से कुछ माँगने पर यह मांगने वाले की शुद्ध इच्छा पूरी करता है। ऐसी आस्था भी है कि इसकी जड़ को पुष्य नक्षत्र में विशेष विधि-विधान के साथ जिस घर में स्थापित किया जाता है, वहाँ स्थायी रूप से लक्ष्मी का वास बना रहता
श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा प्राप्त होने पर, सर्वप्रथम उसकी अच्छी तरह सफाई कर स्वच्छ जल से स्नान कराना चाहिए। इसके बाद, विधिवत पूजन निम्नलिखित तरीके से करें:: श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा को पूर्व दिशा की तरफ स्थापित करें। एक लकड़ी के चौके या पाटे पर पीला वस्त्र बिछाएं। उस पर एक प्लेट रखें और प्लेट पर कुमकुम या सिंदूर से अष्टदल बनाएं। इसके ऊपर फूल बिछाकर आसन दें और श्वेतार्क गणपति को विराजमान करें। पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से पूजन करें। पूजन में लाल कनेर के पुष्प अवश्य इस्तेमाल करें।पूजन के दौरान और उसके बाद इन मंत्रों का जप करें:सर्वप्रथम "ॐ पंचाकतम् ॐ अंतरिक्षाय स्वाहा" मंत्र से पूजन करें।इसके पश्चात "ॐ ह्रीं पूर्वदयां ॐ ह्रीं फट् स्वाहा" मंत्र से हवन कर 108 आहुति दें। हवन में लाल कनेर के पुष्प, शहद तथा शुद्ध गाय के घी का प्रयोग करें। फिर गणपति कवच का तीन बार पाठ करें और अथर्वशीर्ष का 11 बार पाठ करें। तत्पश्चात "ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र का 11 माला जप करें और प्रतिदिन कम से कम 1 माला जप अवश्य करें। "ॐ ह्रीं श्रीं मानसे सिद्धि करि ह्रीं नमः" मंत्र बोलते हुए लाल कनेर के पुष्पों को नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें।धार्मिक महत्व के अतिरिक्त, श्वेतार्क (आक) का आयुर्वेद में भी व्यापक उपयोग है: त्वचा रोग: इसका प्रयोग चर्म रोगों के उपचार में किया जाता है।पाचन और पेट: पाचन समस्याओं और पेट के रोगों को दूर करने में सहायक है।दर्द निवारक: ट्यूमर, जोड़ों के दर्द, घाव और दांत के दर्द को दूर करने में इसका उपयोग होता है।बालों के लिए: इस पेड़ का दूध गंजापन दूर करने और बाल गिरने को रोकने वाला माना गया है।श्वास संबंधी: इसके फूल, छाल और जड़ दमा और खांसी को दूर करने वाले माने गए हैं।श्वेतार्क गणेश सिर्फ एक धार्मिक प्रतिमा नहीं, बल्कि सुख-समृद्धि, सफलता और सकारात्मक ऊर्जा का एक शक्तिशाली स्रोत हैं। इनकी विधिवत पूजा और घर में इनकी उपस्थिति से जीवन के विभिन्न पहलुओं में लाभ प्राप्त होता है, और यह आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ भौतिक सुखों की प्राप्ति में सहायक है
ऋग्वेद में गणपति' का अर्थ अक्सर ब्रह्मांड के स्वामी, समूहों के अधिपति या देवताओ के प्रमुख है । वैदिक काल के 'बृहस्पति' या 'ब्रह्मणस्पति' (ज्ञान और प्रार्थना के देवता) में गणेश के कुछ प्रारंभिक तत्व देखे जा सकते हैं। इस काल में, बाधाओं को दूर करने वाले और मार्गदर्शक देवताओं की अवधारणाएं मौजूद थीं । गणेश का विशिष्ट स्वरूप और उनकी लोकप्रिय पहचान पौराणिक काल (लगभग 300 ईसा पूर्व से 1000 ईस्वी) में विकसित हुई। इस दौरान पुराणों (जैसे गणेश पुराण, मुद्गल पुराण) और महाकाव्यों (महाभारत, रामायण) में उनकी कहानियाँ, वंशावली और महत्व विस्तृत रूप से वर्णित किए गए। माता पार्वती ने अपने उबटन से गणेश का निर्माण किया और उन्हें द्वार पर पहरा देने का आदेश दिया। जब शिव आए तो गणेश ने उन्हें रोका, जिससे क्रोधित होकर शिव ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में, शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर लगाकर उन्हें पुनर्जीवित किया। गजमुख स्वरूप: हाथी का मुख उनके ज्ञान, बुद्धि, शक्ति और स्मृति का प्रतीक बन गया। उनकी बड़ी सूंड, बड़े कान और एक टूटा हुआ दांत (एकदंत) उनके विशिष्ट लक्षणों में शामिल हो गए।बाधाओं के निवारणकर्ता: इस काल में गणेश को विघ्नहर्ता (बाधाओं को दूर करने वाले) और सिद्धिदाता (सफलता प्रदान करने वाले) के रूप में स्थापित किया गया। यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य या पूजा से पहले गणेश की पूजा अनिवार्य मानी गई।मूषक वाहन: उनका वाहन मूषक (चूहा), उनकी विनम्रता और हर जगह पहुँचने की क्षमता का प्रतीक है, साथ ही यह इच्छाओं और अनियंत्रित मन पर नियंत्रण का भी प्रतिनिधित्व करता है।रिद्धि और सिद्धि: उन्हें अक्सर रिद्धि (समृद्धि) और सिद्धि (ज्ञान और उपलब्धि) के पति के रूप में दर्शाया जाता है, जो उनके परोपकारी स्वभाव और भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने की क्षमता को दर्शाता है ।
मध्यकालीन भारत में गणपत्य संप्रदाय का उदय हुआ, जो विशेष रूप से गणेश को सर्वोच्च देवता के रूप में पूजता था। इस काल में गणेश के कई मंदिरों का निर्माण हुआ और उनकी पूजा का विस्तार हुआ।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में गणेश की पूजा का अपना विशिष्ट रूप विकसित हुआ। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जो लोकमान्य तिलक द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सामाजिक एकता के प्रतीक के रूप में भी लोकप्रिय किया गया था। कला और संस्कृति: गणेश की प्रतिमाएँ, चित्रकलाएँ और कलाकृतियाँ भारतीय कला और संस्कृति का अभिन्न अंग बन गईं। उन्हें विभिन्न मुद्राओं और रूपों में दर्शाया गया, जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा और सर्वव्यापकता को दर्शाते हैं।
भारतीय प्रवासियों के साथ-साथ योग और आध्यात्मिकता के वैश्विक प्रसार के कारण गणेश की पूजा भारत से बाहर भी फैल गई है। उन्हें अब विश्व भर में सौभाग्य, ज्ञान और बाधाओं को दूर करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। भगवान , गणेश का इतिहास सिर्फ एक देवता के विकास का नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता में विश्वास, कला और सामाजिक प्रथाओं के गहरे जुड़ाव का भी एक उदाहरण है। उनका स्वरूप और महत्व समय के साथ विकसित हुआ है, लेकिन बाधाओं के निवारणकर्ता और ज्ञान के प्रतीक के रूप में उनकी भूमिका सदैव अपरिवर्तित रही है।
सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई, महाराष्ट्र: यह भारत के सबसे प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में से एक है। इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली है और यहाँ हर दिन हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। अष्टविनायक मंदिर, महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में भगवान गणेश के आठ स्वयंभू (स्वयं प्रकट) मंदिरों का एक समूह है, जिन्हें 'अष्टविनायक' कहा जाता है। ये मंदिर पुणे, रायगढ़ और अहमदनगर जिलों में फैले हुए हैं, और गणेश भक्तों के लिए इनका विशेष महत्व है । उच्ची पिल्लयार कोइल मंदिर, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु: यह मंदिर एक 272 फीट ऊँचे पहाड़ पर स्थित है और पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, जहाँ भगवान गणेश ने विभीषण से रंगनाथ की मूर्ति स्थापित करने में मदद की थी।कनिपकम विनायक मंदिर, चित्तूर, आंध्र प्रदेश: यह मंदिर अपनी चमत्कारी जलधारा के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें गणेश की मूर्ति का आकार बढ़ता रहता है। रणथंभौर गणेश मंदिर, सवाई माधोपुर, राजस्थान: यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है जहाँ भगवान गणेश अपने पूरे परिवार (रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ) के साथ त्रिनेत्र रूप में विराजमान हैं। यहाँ भक्त अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए पत्र भी लिखते हैं। श्रीमंत दग्दूसेठ हलवाई गणपति मंदिर, पुणे, महाराष्ट्र: यह पुणे के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है और गणेश चतुर्थी के दौरान भव्य उत्सवों के लिए जाना जाता है। खजराना गणेश मंदिर, इंदौर, मध्य प्रदेश: यह भी एक प्राचीन और अत्यंत लोकप्रिय गणेश मंदिर है, जहाँ देश-विदेश से भक्त आते हैं।मधुर महागणपति मंदिर, कासरगोड, केरल: 10वीं शताब्दी का यह मंदिर मधुरवाहिनी नदी के तट पर स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है।
नेपाल: नेपाल में भी भगवान गणेश को विशेष रूप से पूजा जाता है। सूर्यविनायक मंदिर (भक्तपुर जिले में) नेपाल के प्रमुख गणेश मंदिरों में से एक है।श्रीलंका: श्रीलंका में गणेश को पिल्लयार के नाम से पूजा जाता है। अरियालाई सिद्धिविनायकर मंदिर और कटारगामा मंदिर (जहाँ गणेश को देवता स्कंद के भाई के रूप में पूजा जाता है) यहाँ के प्रसिद्ध गणेश मंदिर हैं। मलेशिया: मलेशिया में भी भारतीय मूल के लोग और हिंदू धर्म के अनुयायी बड़ी संख्या में हैं। श्री सिथी विनयगर मंदिर (पेटलिंग जया, सेलंगोर में) यहाँ का एक महत्वपूर्ण गणेश मंदिर है, जिसे पीजे पिल्लैयार मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।सिंगापुर: सिंगापुर में भी कई गणेश मंदिर हैं, जो भारतीय समुदाय के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र हैं।थाईलैंड: थाईलैंड में भगवान गणेश को फ्रा फिकनेट या फ्रा गणेश के रूप में जाना जाता है और उन्हें कला, शिक्षा और सफलता का देवता माना जाता है। यहाँ कई सार्वजनिक स्थानों पर और व्यवसायों में गणेश की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। चियांग माई और बैंकॉक में भी गणेश के मंदिर हैं। इंडोनेशिया: विशेष रूप से बाली में, जहाँ हिंदू धर्म का प्रभाव अभी भी मजबूत है, गणेश की मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ व्यापक रूप से पाई जाती हैं। इंडोनेशियाई मुद्रा (20,000 रुपिया) पर भी भगवान गणेश का चित्र अंकित है, जो उनकी सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है। मॉरीशस: मॉरीशस में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं, और यहाँ भी गणेश के कई मंदिर हैं जहाँ नियमित पूजा-अर्चना होती है।नीदरलैंड्स: यूरोप में भी कुछ गणेश मंदिर हैं, जैसे नीदरलैंड्स में श्री वरथराज सेल्वाविनयगर मंदिर, जो विदेशों में बढ़ती हिंदू आबादी की धार्मिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा: उत्तरी अमेरिका में भी कई प्रमुख गणेश मंदिर हैं, जैसे न्यूयॉर्क में गणेश टेम्पल सोशायटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका (फ्लोशिंग गणेश टेम्पल) और टोरंटो में श्री शिव सत्यनारायण मंदिर जहाँ गणेश की भी पूजा की जाती है। भगवान गणेश की "मंगल मूर्ति" और उनकी पूजा भारतीय उपमहाद्वीप से निकलकर विश्व के कोने-कोने तक फैली हुई है, जहाँ उन्हें ज्ञान, बुद्धि, सफलता और बाधाओं को दूर करने वाले देवता के रूप में श्रद्धापूर्वक पूजा जाता है।
बाधाओं को दूर करने वाले (विघ्नहर्ता): यह गणेश का सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से स्वीकार्य स्वरूप है। चाहे कोई नया व्यवसाय शुरू कर रहा हो, पढ़ाई शुरू कर रहा हो, या कोई बड़ा निर्णय ले रहा हो, विश्वभर में लोग मानते हैं कि गणेश की पूजा से रास्ते की सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। यही कारण है कि उन्हें "विघ्नहर्ता" कहा जाता है।
गणेश को ज्ञान, विवेक और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। उनके बड़े सिर को बड़ी सोच और गहन ज्ञान का प्रतीक माना जाता है, जबकि उनके छोटे कान ध्यान से सुनने की क्षमता को दर्शाते हैं। कई शैक्षणिक संस्थानों और ज्ञान प्राप्त करने वालों के बीच उनकी विशेष पूजा की जाती है। सौभाग्य और समृद्धि के दाता (मंगलमूर्ति): गणेश को अक्सर "मंगलमूर्ति" कहा जाता है, जिसका अर्थ है सौभाग्य और कल्याण प्रदान करने वाले। वे समृद्धि, धन और खुशी के प्रतीक हैं। बहुत से लोग अपने घरों, दुकानों या कार्यालयों में गणेश की मूर्ति रखते हैं ताकि सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य आकर्षित हो। गणेश को कला, लेखन और विज्ञान का संरक्षक है। उन्होंने व्यास जी द्वारा महाभारत को लिपिबद्ध किया था, इसलिए वे लेखकों और विद्वानों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। रचनात्मक क्षेत्रों से जुड़े लोग अक्सर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।हिंदू धर्म में, किसी भी पूजा या शुभ कार्य से पहले गणेश की पूजा करना अनिवार्य है। यह परंपरा भारत के बाहर भी प्रचलित है । दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों जैसे थाईलैंड, इंडोनेशिया (विशेषकर बाली), नेपाल, श्रीलंका और मलेशिया में, गणेश सिर्फ एक धार्मिक देवता नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रतीक भी हैं। इंडोनेशिया की 20,000 रु . के नोट पर भी गणेश का चित्र है, जो उनकी सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है। पश्चिमी देशों में योग और ध्यान के बढ़ते चलन के साथ, गणेश को भी आध्यात्मिक विकास और आंतरिक शांति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। उनकी मूर्तियाँ अक्सर योग और ध्यान केंद्रों में पाई जाती हैं। एकदंत (एक दांत वाले): उनका एकदंत रूप (टूटा हुआ दांत) त्याग, अखंडता और केंद्रित ध्यान का प्रतीक है। भारतीय समुदायों के विश्वभर में फैलने से गणेश की पूजा भी उनके साथ फैली है। सनातन धर्म का प्रसार: योग, आयुर्वेद और भारतीय दर्शन के बढ़ते वैश्विक आकर्षण ने भी गणेश जैसे देवताओं को गैर-भारतीय आबादी के बीच लोकप्रिय बनाया है। बाधाओं को दूर करने, ज्ञान प्राप्त करने और सौभाग्य लाने की अवधारणाएँ सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य हैं, जिससे गणेश की अपील किसी विशिष्ट धर्म तक सीमित नहीं रहती। विश्व में गणेश जी को न केवल एक देवता के रूप में पूजा जाता है, बल्कि उन्हें ज्ञान, समृद्धि, बाधाओं के निवारण और शुभता के एक वैश्विक प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।
. सतयुग में गणेश जी का अवतार: महोत्कट विनायक अवतार का नाम: महोत्कट विनायक रूप: श्वेत (सफेद) वर्ण, दस हाथ।वाहन: सिंह (शेर) है। महोत्कट विनायक ने कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी अदिति के पुत्र के रूप में अवतार लिया था। यह एक पौराणिक कथा है जो दर्शाती है कि वे देवकुल के एक महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में प्रकट हुए। राक्षस राज नरांतक और देवान्तक का संहार करना, जो देवताओं और ऋषियों को पीड़ा दे रहे थे, तथा धर्म की स्थापना करना।
त्रेतायुग में गणेश जी का अवतार: मयूरेश्वर , अवतार मयूरेश्वर , रूप: श्वेत (सफेद) वर्ण, छह हाथ।वाहन: मोर। मोर पर सवार होने के कारण उन्हें मयूरेश्वर कहा गया। मयूरेश्वर अवतार भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र के रूप में प्रकट हुए थे। सिंधु नामक राक्षस का वध करने के लिए गणेश ने मोर को अपना वाहन बनाया था। मुद्गल पुराण के अनुसार, इस अवतार का संबंध मोरगाँव (महाराष्ट्र) से है, जो अष्टविनायक मंदिरों में से एक है। यहाँ की मूर्ति को मयूरेश्वर का स्वयंभू स्वरूप माना जाता है। राक्षस राज सिंधु क्रूर राक्षस का वध करना, जिसने तीनों लोकों में भय फैला रखा था और देवताओं को बंदी बना लिया था।
. द्वापरयुग में गणेश जी का अवतार गजानन , रूप: रक्तवर्ण (लाल) रंग, चार हाथ। वाहन: मूषक (चूहा) है। गजानन अवतार भी भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र के रूप में प्रकट हुए थे। यह अवतार सबसे प्रसिद्ध कथा से जुड़ा है जहाँ शिव ने क्रोध में गणेश का सिर काट दिया था और बाद में हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनर्जीवित किया।
गजानन अवतार का संबंध कैलाश पर्वत (पार्वती द्वारा निर्मित) और बाद में विभिन्न स्थानों पर उनकी उपस्थिति से है।
राक्षस राज सिंदुरासुर का वध करना, जो अपने अत्याचारों से आतंक फैला रहा था। कलियुग में गणेश जी का अवतार: धूम्रवर्ण , रूप: धूमिल (धुएँ जैसा या गहरा भूरा) वर्ण, चार हाथ और वाहन: घोड़ा है ।धूम्रवर्ण को भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र है । गणेश जी का धूम्रवर्ण अवतार का जन्म क्रोध और भ्रम (अधर्म) के वातावरण से हुआ माना जाता है, जो कलियुग की विशेषता है। कलियुग की व्याप्त अज्ञानता और पाखंड को दूर करने के लिए प्रकट हुआ एक प्रतीकात्मक स्वरूप है । कलियुग के प्रमुख दोषों - अज्ञान, अहंकार, दंभ और पाखंड को नष्ट करना। वे अपने भक्तों को इन बुराइयों से मुक्ति दिलाते हैं और उन्हें ज्ञान तथा मोक्ष की ओर अग्रसर करते हैं।9472987491
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