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किसान , कृषक , हलधर

किसान , कृषक , हलधर

किसान है कि शान है ,
या राष्ट्र का ये मान है ।
कृषक जगपालनहार ,
हमें इसका भान है ।।
तन औ मन समर्पित ,
जगजीवन कल्याण में ।
थोड़ा भी चुकता नहीं ,
राष्ट्र के इस‌‌ अरमान में ।।
राष्ट्रध्वज भी लहराता ,
किसानों के सम्मान में ।
कृषक चार चाॅंद लगाए ,
राष्ट्रगीत व राष्ट्रगान में ।।
तन ढंग का वस्त्र नहीं ,
कृषक गुणों के खान हैं ।
भोजन का समय नहीं ,
हमारे कृषक महान हैं ।।
किसान जवान विज्ञान ,
तीनों भारतीय शान हैं ।
राष्ट्र विश्वगुरु बनानेवाला ,
भारतीय निश्छल ज्ञान है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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