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गीता को जीवन में उतारने वाले आदर्श साहित्यकार थे 'जगतबंधु'

गीता को जीवन में उतारने वाले आदर्श साहित्यकार थे 'जगतबंधु'

  • ८५पूर्ति पर साहित्यकार डा मेहता नगेंद्र सिंह एवं ५०वें जन्मोत्सव पर डा पल्लवी विश्वास का हुआ अभिनन्दन,
  • सम्मेलन परिसर में लगाए गए सिंदूर के पौधें, हुआ कवि-सम्मेलन,पुस्तक 'बाल सुबोधिनी का हुआ लोकार्पण, नृत्य और गायन की भी हुई प्रस्तुतियाँ

पटना, २२ जुलाई। अपने जीवन को किस प्रकार मूल्यवान और गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सकता है, इसके जीवंत उदाहरण और प्रेरणा-पुरुष थे, साहित्यसेवी जगत नारायण प्रसाद 'जगतबंधु'। उनका अनुशासित और कल्याणकारी जीवन स्वयं में ही एक ऐसा ग्रंथ रहा, जिसका अध्ययन कर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को मूल्यवान और सार्थक बना सकता है। ९३ वें वर्ष की आयु में उन्होंने अपना देह छोड़ा, पर ९२ वर्ष की अवस्था में भी, वे ७० वर्ष के किसी व्यक्ति से अधिक स्वस्थ, सक्रिय और ज़िंदादिल दिखते थे। गीता को जीवन में उतारने वाले, जीवन से सात्विक-प्रेम रखने वाले और सबके लिए कल्याण की सदकामना रखने वाले कर्म-योगी थे जगतबंधु। उनकी हिन्दी सेवा भी श्लाघ्य और अनुकरणीय है।
यह बातें मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह में सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में अपनी निष्ठापूर्ण सेवाओं से अवकाश लेने के पश्चात जगतबंधु जी साहित्य की ओर अभिमुख हुए और हिन्दी साहित्य की भी उसी निष्ठा से सेवा की। 'गीतांजलि' के नाम से 'गीता' पर हिन्दी में लिखी इनकी पुस्तक, उनके विशद आध्यात्मिक ज्ञान, चिंतन और लेखन-सामर्थ्य का ही परिचय नहीं देती, पाठकों को गीता के सार को समझने की भूमि भी प्रदान करती है।
आज ही सुप्रसिद्ध पर्यावरण-वैज्ञानिक और साहित्यकार डा मेहता नगेंद्र सिंह की ८५ पूर्ति पर तथा सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास को उनके ५०वें जन्मोत्सव पर सारस्वत अभिनन्दन किया गया। सम्मेलन अध्यक्ष ने दोनों ही विभूतियों को वंदन-वस्त्र और पुष्पहार से सम्मानित किया। डा सुलभ ने कहा कि डा मेहता एक कर्मठ पर्यावरण-वैज्ञानिक तथा निष्ठावान साहित्यकार हैं। पर्यावरण-साहित्य में डा मेहता का योगदान अभूतपूर्व है। वहीं डा पल्लवी विश्वास ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से कला-जगत को समृद्ध किया है। एक नृत्याचार्या के रूप में इनकी ख्याति भारत वर्ष में फैली है।
इस अवसर पर डा मेहता द्वारा पर्यावरण पर केंद्रित बाल-साहित्य की पुस्तक 'बाल-सुबोधिनी' का लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने किया। न्यायमूर्ति ने कहा कि डा मेहता ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण और पर्यावरण-साहित्य को अर्पित कर दिया है। पर्यावरण के इनके विशद ज्ञान और वृक्षारोपण के इनके अभियान से समाज लाभान्वित हुआ है। आनेवाली पीढ़ियाँ इनके योगदान को स्मरण कर गौरवान्वित होगी।
सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, जगतबंधु जी के जमाता और भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी रमण कुमार, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, पं अविनय काशीनाथ पाण्डेय और बाँके बिहारी साव ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।
इस अवसर पर एक कवि-सम्मेलन के साथ नृत्य-गीत का भी सांस्कृतिक-उत्सव भी संपन्न हुआ। चंदा मिश्र की वाणी वंदना से आरंभ हुए कवि-सम्मेलन में वरिष्ठ कवि डा रत्नेश्वर सिंह, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, सिद्धेश्वर, डा एम के मधु, सुजाता मिश्र, कुमार अनुपम, ईं अशोक कुमार, नरेंद्र कुमार, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, इन्दु भूषण सहाय, राज प्रिया रानी, डा सुषमा कुमारी और बिन्देश्वर प्रसाद गुप्ता, आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया । सम्मेलन के कला-विभाग और कलाकक्ष के कलाकारों ने गीत-नृत्य की अनेक प्रस्तुतियाँ दीं, जिनमे आयुर्मान यास्क, काशिका पाण्डेय, कोमल कुमारी, दुर्गेश नंदिनी, लवली कुमारी,लकी कुमारी, पूनम के नाम सम्मिलित हैं। इस अवसर पर डा मेहता के सौजन्य से सम्मेलन परिसर में 'सिंदूर' के पाँच पौधें भी लगाए गए। उपहार स्वरूप अतिथियों को भी सिंदूर के पौंधे भेंट किए गए। कार्यक्रम का संचालन कवयित्री डा अर्चना त्रिपाठी ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के अर्थमंत्री प्रो सुशील कुमार झा ने किया।
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