साथी,आज मिले हैं
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
साथी,आज मिले हैं,कल की कौन कहे।
हिलमिल रहें परस्पर
जीवन-जोत जगाएँ,
भेद-भाव सब झूठे
मुधा न वैर बढ़ाएँ;
कुछ भी नहीं यहाँ थिर सबकुछ काल-धार में बहे।
साथी आज मिले हैं,कल की कौन कहे ।
मुहब्बत ही कुद्रत की
नायाब नेमत है,
केवल इसी से खल्क की
खैरोबरकत है;
सच्चा है इंसान वही जो प्रेम-पंथ को गहे ।
साथी, आज मिले हैं,कल की कौन कहे।
कालनेमियों के हाथों में
सौंपी सत्ता,
जो गरीब जनता का
हरते मालोमत्ता;
जन-जन जगे चेतना,कब तक वह अन्याय सहे।
साथी,आज मिले हैं,कल की कौन कहे।
संस्कृतियों का संगम
गंगासागर भारत,
सर्वधर्मसमभाव
महामन्त्र है संतत;
वही यथार्थ धर्मविद् है जो मूलतत्त्व को गहे ।
साथी,आज मिले है,कल की कौन कहे।
मंदिर-मस्जिद -गिरजा-
सिनेगौग-गुरुद्वारा,
लक्ष्य एक सबका पथ
अपना अपना न्यारा;
गले लगाएँ सबको, सच्चा धर्म विरोध जहे ।
साथी,आज मिले हैं,कल की कौन कहे।
(जहे =छोड़े,त्यागे)
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