"खुशी का मूल्य, पैसा नहीं"
पैसा — प्रिय मित्रों यह शब्द सुनते ही हमारे मन में भविष्य की योजनाएँ, ज़रूरतें, एवं कभी-कभी इच्छाएँ भी दौड़ने लगती हैं। यह सत्य है कि जीवन में धन का महत्व है; यह आराम, सुविधा एवं सुरक्षा देता है। लेकिन जब हम खुशी को भी इसी के तराजू में तौलने लगते हैं, तो एक अंतहीन दौड़ शुरू हो जाती है — जिसमें मंज़िल नहीं, बस थकावट होती है।
"Money is numbers and numbers never end…" — यह विचार हमें याद दिलाता है कि यदि हमारी खुशी की शर्तें भी असीमित संख्याओं पर टिकी हों, तो वह कभी पूरी नहीं हो सकती। जितना भी कमा लो, कुछ और पाने की इच्छा बनी रहती है। एक लक्ष्य पूरा होते ही दूसरा खड़ा हो जाता है, एवं इस तरह हम कभी ठहरकर जीवन का आनंद लेना सीख ही नहीं पाते।
वास्तविक खुशी वहाँ है जहाँ संतोष है। वह एक कप चाय में भी हो सकती है, किसी की मुस्कान में भी, या एक गहरे संवाद में भी। पैसा ज़रूरी है, पर वह साधन है — साध्य नहीं। जब हम इसे अपना अंतिम लक्ष्य बना लेते हैं, तो स्वयं को खो बैठते हैं।
इसलिए ज़रूरत है कि हम अपने भीतर झाँकें — समझें कि जो हमारे पास है, उसमें भी बहुत कुछ ऐसा है जो अनमोल है, पर अनगिनत नहीं।
खुशी सीमित साधनों में भी मिल सकती है —
अगर मन में संतोष और दृष्टि में गहराई हो।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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