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प्रेमचंद की कलम,सामाजिक चेतना का कमल

प्रेमचंद की कलम,सामाजिक चेतना का कमल

शब्द भाव यथार्थ स्पर्शित,
सशक्त प्रहरी जन स्वर ।
लेखनी उन्मुख निर्धन कृषक
नारी शोषित उत्थान प्रवर ।
सुलेख ग्राम्य जीवन दुःख कष्ट,
मानवता उत्कर्षी भाव विमल ।
प्रेमचंद की कलम,सामाजिक चेतना का कमल ।।


हर रचना अंतर सत्य बोध,
लेखन प्रहार कुलीन वर्ग ।
पटाक्षेप भेदभाव छुआछूत,
प्रताड़ना नीति सामंत संवर्ग ।
अप्रतिम कहानी उपन्यास आभा,
जनमानस जागृति ध्येय सकल ।
प्रेमचंद की कलम,सामाजिक चेतना का कमल ।।


संपूर्ण जीवन संघर्ष ओतप्रोत,
पर लेखन पट ओजस्वी छवि ।
सृजन कौशल लोक प्रतिबिंब,
साहित्य ओज अनुपमा रवि ।
लेखन आत्ममुग्ध सौंदर्य बोध परे,
सद्प्रयास जनमानस सबल ।
प्रेमचंद की कलम,सामाजिक चेतना का कमल ।।


प्रेरणास्पद तीन सौ कहानियां,
डेढ़ दर्जन आधिक्य उपन्यास ।
तीन अद्भुत नाटक संरचना,
हर कृति उद्गम अपनत्व उजास ।
गबन गोदान सेवासदन कालजयी,
अन्य प्रतिष्ठा सदैव उत्तम निर्मल ।
प्रेमचंद की कलम, सामाजिक चेतना का कमल ।।


कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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