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70877 करोड़ की यूसी राशि लंबित: इंडियन सीए एसोसिएशन ने जताई गंभीर चिंता, बताया बहु-वर्षीय वित्तीय घोटाले का संकेत

70877 करोड़ की यूसी राशि लंबित: इंडियन सीए एसोसिएशन ने जताई गंभीर चिंता, बताया बहु-वर्षीय वित्तीय घोटाले का संकेत

  • बिहार में सार्वजनिक धन के दुरुपयोग और लेखा प्रणाली में लापरवाही की आशंका, SIT जांच की मांग

पटना, 30 जुलाई 2025:
बिहार में ₹70,877.61 करोड़ की लंबित उपयोगिता प्रमाण-पत्र (यूसी) राशि को लेकर इंडियन सीए एसोसिएशन ने गहरी चिंता जताई है। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सीए संजय कुमार झा ने कहा कि यह केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि वर्षों से चला आ रहा एक "सुनियोजित वित्तीय घोटाला" प्रतीत होता है, जिसकी तत्काल उच्चस्तरीय जांच आवश्यक है।

हाल ही में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में यह उजागर हुआ कि 31 मार्च 2024 तक राज्य सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा ₹70,877.61 करोड़ की यूसी राशि लंबित है। साथ ही ₹9,205.76 करोड़ के विस्तृत आकस्मिक (डीसी) बिल भी विभागों द्वारा प्रस्तुत नहीं किए गए हैं।

सीए संजय कुमार झा ने सख्त शब्दों में कहा, "यह कोई सामान्य प्रक्रिया में देरी नहीं है, बल्कि शासन व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही की भारी कमी का प्रमाण है। यह सार्वजनिक धन की बर्बादी का गंभीर मामला है।"

उन्होंने बताया कि यूसी और डीसी बिल वह दस्तावेज होते हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि प्राप्त अनुदान का वैध व उपयुक्त उपयोग हुआ है। इन दस्तावेजों की अनुपस्थिति इस बात की आशंका को जन्म देती है कि या तो राशि का उपयोग ही नहीं हुआ, या उसका दुरुपयोग हुआ है, अथवा उसका कोई लेखा-परीक्षणीय दस्तावेज ही मौजूद नहीं है।

इस गंभीर प्रकरण को लेकर इंडियन सीए एसोसिएशन ने चार प्रमुख मांगें रखी हैं:

  • एक उच्च स्तरीय विशेष जांच दल (SIT) का गठन कर मामले की निष्पक्ष जांच की जाए।
  • जिन विभागों ने यूसी और डीसी बिल जमा नहीं किए हैं, उनके विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई की जाए।
  • लोक लेखा समिति (PAC) की निष्क्रियता की न्यायिक समीक्षा कर उसकी जवाबदेही तय की जाए।
  • इस विषय को विधानमंडल और सार्वजनिक मंचों पर खुली चर्चा के लिए लाया जाए।


सीए झा ने चेतावनी दी कि यदि इस विषय को अनदेखा किया गया तो यह भारत के संघीय ढांचे में एक खतरनाक वित्तीय अराजकता और भ्रष्टाचार को स्वीकार करने जैसा होगा।

इंडियन सीए एसोसिएशन ने घोषणा की है कि वह इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट भारत सरकार के वित्त मंत्रालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (C&AG), नीति आयोग और बिहार विधानमंडल को जल्द ही सौंपेगा।

यह मामला केवल आंकड़ों का नहीं, बल्कि जनता के विश्वास, टैक्सपेयर के पैसे और लोकतांत्रिक व्यवस्था की पारदर्शिता से जुड़ा सवाल है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस मुद्दे पर कितनी तत्परता और ईमानदारी से कार्रवाई करती है।

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