चातुर्मास महात्म्य (अध्याय - 07)

इस अध्याय में पढ़िये👉 (शालग्राम पूजन, द्वादशाक्षर मन्त्र एवं राम नाम की महिमा)
गालवजी कहते हैं-गण्डकी नदी में भगवान् विष्णु शालग्राम रूप से प्रकट होते हैं और नर्मदा नदी में भगवान् शिव नर्मदेश्वर रूप से उत्पन्न होते हैं। ये दोनों स्वयं प्रकट हैं कृत्रिम नहीं। शालग्राम शिला में व्याप्त भगवान् विष्णु चौबीस भेदों से उपलब्ध होते हैं; किन्तु भगवान् सदाशिव सदा एक हाथ से ही नर्मदा से प्रकट होते हैं। जहाँ गण्डकी के जल में शालग्रामशिला उपलब्ध होती है, वहाँ स्नान और जलपान करके मनुष्य ब्रह्मपद को प्राप्त होता है। गण्डकी से प्रकट होने वाली शालग्राम शिला का पूजन करके मनुष्य शुद्धात्मा योगीश्वर होता है। भगवान् विष्णु पूजन, पठन, ध्यान और स्मरण करने पर समस्त पापों का नाश करने वाले हैं। फिर शालग्राम शिला में उनकी पूजा की जाय, तो उसके महत्त्व के विषय में क्या कहना है; क्योंकि शालग्राम में साक्षात् श्रीहरि विराजमान होते हैं। चातुर्मास्य में शालग्राम गत भगवान् विष्णु को नैवेद्य, फल और जल अर्पण करना विशेष रूप से शुभ होता है। चातुर्मास्य में शालग्राम शिला सबको पवित्र करती है। जहाँ शालगराम स्वरूप भगवान् विष्णु की पूजा की जाती है, वहाँ पाँच कोस तक के भूभाग को वे भगवान् पवित्र कर देते हैं वहाँ कोई अशुभ नहीं होता जहाँ लक्ष्मीपति भगवान् शालग्राम का पूजन होता है, वहाँ वह पूजन ही सबसे बड़ा सौभाग्य है, वही महान् तप है और वही उत्तम मोक्ष है। जहाँ दक्षिणावर्त शंख, लक्ष्मीनारायण स्वरूप शालग्राम शिला, तुलसी का वृक्ष, कृष्णसार मृग और द्वारका की शिला (गोमतीचक्र) हो, वहाँ लक्ष्मी, विजय, विष्णु और मुक्ति-इन चारों की उपस्थिति होती है। भगवान् लक्ष्मीनारायण (शालग्राम)-की पूजा करने वाले मनुष्य को भगवान् अति पुण्य प्रदान करते हैं, जिससे वह उसी क्षण मुक्त हो जाता है। भगवान् विष्णु का ध्यान पापों का नाश करने वाला है तुलसी की मंजरियों से पूजित हुए भगवान् शालग्राम पुनर्जन्म का नाश करने वाले हैं। सब प्रकार से यत्न करके उन्हीं जगदीश्वर विष्णु का सेवन करना चाहिये। वे सम्पूर्ण संसार में व्याप्त होकर स्थित हैं।
एक समय पार्वतीजी ने शिवजी से कहा- महेश्वर ! आपके हाथ में यह रुद्राक्ष की माला सदा मौजूद रहती है। देव! आप किस मन्त्र का जप करते हैं, यह सन्देह मेरे मन में उठा करता है; क्योंकि आप ही सबके स्वामी हैं। आपसे बढ़कर दूसरे किसी को मैं नहीं जानती। फिर भी आप बड़ी भक्ति से सदा किसी मन्त्र का जप करते हुए दिखायी देते हैं देवेश! आपसे भी श्रेष्ठ और कौन है, जिसका आप मन-ही-मन चिन्तन किया करते हैं।
भगवान् शिव बोले- प्रिये! भगवान् विष्णु के सहस्र नामों में जो सारभूत नाम है, मैं उसी का नित्य निरन्तर चिन्तन करता हूँ। मैं राम नाम जपता हूँ और उसी के अंक की इस माला द्वारा गणना करता हूँ। श्रीराम का अवतार बहुत ही श्रेष्ठ है। द्वादश अक्षरों से युक्त जो सनातन ब्रह्मरूप प्रणव है वह अ, ऊ, म-इन तीन अक्षरों से सम्बद्ध है, तीन ग्रामों से युक्त है उस बिन्दुयुक्त प्रणव-मन्त्र का में सदैव माला द्वारा जप करता हूँ। यह सम्पूर्ण वेदों का सारभूत है। यह नित्य, अक्षर, निर्मल, अमृत, शान्त, तद्रूप, अमृततुल्य, कलातीत, सम्पूर्ण जगत् का आधार, मध्य और कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों का बीज है। इसको जानकर मनुष्य शीघ्र ही घोर संसार बन्धन से मुक्त हो जाता है। ॐकार सहित जो द्वादशाक्षर बीज है, उसका जप करने वाले मनुष्य के लिये वह कोटि-कोटि पापों का दाह करने वाला दावानल बन जाता है। द्वादशाक्षर मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय)- का चिन्तन ही सबसे उत्तम ज्ञान है, जो शुभ और अशुभ दोनों का विनाश करने वाला है। द्वादशाक्षर मन्त्र करोड़ों जन्मों में कहीं किसी को उपलब्ध होता है। चातुर्मास्य में उसका स्मरण विशेषरूप से ब्रह्म की प्राप्ति कराने वाला तथा मनोवांछित वस्तु देने वाला है। इस अक्षर से प्रकट हुए मन्त्र का जो मन, वाणी और क्रिया द्वारा आश्रय लेता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता। जो भगवान् विष्णु की भक्ति में तत्पर हो उनके बारह मास सम्बन्धी पापहारी नामों का शालग्राम शिला में न्यास करता है, उसे प्रतिदिन द्वादशाह यज्ञ का फल प्राप्त होता है। द्वादशाक्षर मंत्र के माहात्म्य का सहसत्रों जिह्वाओं द्वारा भी वर्णन नहीं किया जा सकता। संसार में इसका जप, ध्यान और स्तवन करने पर यह महामन्त्र सभी मासों में पाप-नाश करने वाला होता है; किंतु चातुर्मास्य में तो इसका यह माहात्म्य विशेष रूप से बढ जाता है। इस मन्त्र के चिन्तन मात्र से ही मनुष्यों को मनचाही सिद्धि प्राप्त हो जाती है। इसके जप से सनातन मोक्ष प्राप्त होता है। शान्ति परायण जप एवं ध्यान से मनुष्य निश्चय ही मोक्ष को प्राप्त होता है। शूद्रों और स्त्रियों के लिये प्रणव रहित जप का विधान है। पूर्वोक्त अठारह शूद्र जाति वाले मनुष्यों को जप-तप करने की आवश्यकता नहीं है। वे ब्राह्मण-भक्ति, दान और विष्णु भगवान् के चिन्तन से सिद्ध हो जाते हैं। उनके लिये रामनाम मन्त्र ही है यही उन्हें कोटि मन्त्रों से अधिक फल देनेवाला होता है। राम' इस दो अक्षर के नाम का जप सब पापों का नाश करने वाला है। मनुष्य चलते, खड़े होते और सोते समय भी श्रीरामनाम का कीर्तन करने से इहलोक में सुख पाता है और अन्त में भगवान् विष्णु का पार्षद होता है 'राम' यह दो अक्षरों का मन्त्र कोटिशत मन्त्रों से भी बढ़कर है। यह सभी संकर जातियों के पाप का नाशक बतलाया गया है। चातुर्मास्य प्राप्त होने पर तो यह राममन्त्र अनन्त फल देने वाला होता है। इस भूतल पर राम नाम से बढ़कर कोई पाठ नहीं है। जो राम नाम की शरण ले चुके हैं, उन्हें कभी यमलोक की यातना नहीं भोगनी पड़ती। जो-जो विघ्नकारक दोष हैं, सब राम नाम का उच्चारण करने मात्र से नष्ट हो जाते हैं। जो परमात्मा समस्त स्थावरजंगम प्राणियों में अन्तर्यामी आत्मा रूप से रम रहा है, उसे 'राम' कहते हैं। 'राम' यह मन्त्र राज भय तथा व्याधियों का नाश करने वाला है। यह युद्ध में किजय देने वाला तथा समस्त कार्यों एवं मनोरथों को सिद्ध करने वाला है। रामनाम को सम्पूर्ण तीर्थों का फल कहा गया है। वह ब्राह्मणों के लिये भी मनोवांछित फल देनेवाला है। रामचन्द्र, राम-राम इत्यादि रूप से उच्चारण किया जाने वाला यह दो अक्षरों का मन्त्रराज भूतल पर सब कार्य सिद्ध करने वाला है। देवता भी राम नाम के गुण गाते हैं। इसलिये पार्वती ! तुम भी सदा राम नाम का जप करो। जो राम नाम का जप करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। राम नाम से ही सहस्र नामों का पुण्य होता है। विशेषत: चातुर्मास्य में उसका पुण्य दस गुना बढ़ जाता है। राम नाम के उच्चारण से हीन जाति में उत्पन्न हुए लोगों का महान् पाप भी भस्म हो जाता है। ये भगवान् श्रीराम सम्पूर्ण जगत् को अपने तेज से व्याप्त करके स्थित हैं और सब मनुष्यों में अन्तरात्मा रूप से रहकर उनके पूर्व जन्मोपार्जित स्थूल एवं सूक्ष्म पापों को क्षण भर में भस्म करके उन्हें पवित्र कर देते हैं।
संदर्भ:- श्रीस्कन्द महापुराण
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