"स्वस्थ जीवन के चार आधार स्तंभ:
संतुलन, शांति, स्नेह और विद्या"
जीवन की दौड़ में हम अकसर शरीर के वास्तविक पोषण को भूल जाते हैं। उपर्युक्त श्लोक हमें चार ऐसे स्तंभों की ओर संकेत करता है जो न केवल हमारे शरीर को संबल प्रदान करते हैं, बल्कि जीवन को भी सार्थक बनाते हैं।
"मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणं" — संतुलित जीवन, संतुलित आहार और संतुलित दिनचर्या से ही शरीर का वास्तविक पोषण संभव है। न अधिक न कम, बस उचित मात्रा ही आरोग्य का मूलमंत्र है। आधुनिक जीवनशैली में यह संतुलन बिगड़ता जा रहा है, जिससे अनेक रोग जन्म लेते हैं।
"चिन्तासमं नास्ति शरीरशोषणं" — चिंता न केवल मानसिक शांति को खा जाती है, बल्कि शरीर को भी भीतर से जर्जर कर देती है। एक सतत भय, असंतोष और भविष्य की अनिश्चितता मनुष्य को रोगग्रस्त बना देती है। अतः आत्मनियंत्रण और सकारात्मक सोच चिंता से मुक्ति का मार्ग है।
"मित्रं विना नास्ति शरीर तोषणं" — मित्रता एक अमूल्य संपदा है। जीवन के सुख-दुख में सच्चे मित्र का साथ हमारे मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करता है। मित्रता केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि आत्मिक बल का स्रोत होती है।
"विद्यां विना नास्ति शरीरभूषणं" — सुशोभित शरीर केवल बाह्य सौंदर्य से नहीं, अपितु विद्या के आभूषण से शोभित होता है। विद्या वह प्रकाश है जो जीवन की दिशा और दृष्टि दोनों को प्रकाशित करता है।
यह श्लोक हमें याद दिलाता है कि एक पूर्ण, संतुलित और सुंदर जीवन के लिए केवल शरीर की देखभाल नहीं, बल्कि मन, आत्मा और बुद्धि का भी संवर्धन आवश्यक है। यही सच्चे पोषण का मार्ग है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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