अतीत का आलोक, भविष्य की यात्रा
मनुष्य का जीवन एक अनवरत यात्रा है, जिसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य अविच्छिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। हम अक्सर भविष्य की चिंता में वर्तमान को जीना भूल जाते हैं, और अतीत को बोझ मानकर उसकी स्मृतियों से कतराते हैं। किंतु यह दृष्टिकोण हमें अपनी ही जड़ों से काट देता है।
“अतीत की गहराइयों में जितना अधिक तुम अपनी इस दृष्टि को स्थिर कर सकोगे, भविष्य की अपार संभावनाओं को उतनी ही स्पष्टता से देख सकोगे। अतीत की स्मृतियां और अनुभव ही वह दीपक हैं, जिनकी ज्योति से भविष्य का पथ आलोकित होता है।”
यह विचार हमें यह सिखाता है कि बीते अनुभव केवल यादें नहीं, बल्कि सीख का अनमोल खजाना हैं। जब हम निर्भीक होकर अपने अतीत का अवलोकन करते हैं—उसकी सफलताओं और विफलताओं को निष्पक्षता से स्वीकारते हैं—तब हमारी दृष्टि में परिपक्वता आती है। यह परिपक्वता ही भविष्य के अनिश्चित रास्तों को रोशनी प्रदान करती है।
हर अनुभव, चाहे वह सुखद हो या दुखद, हमें कहीं गहरे में तैयार करता है। इसलिए अतीत से भागने की बजाय उसका आलोक अपने भीतर संजो लेना चाहिए। यह आलोक ही वह ज्योतिर्मय दीपक है जो हमें अगली मंज़िल तक पहुँचने का साहस और दिशा देता है।
इसलिए स्मरण रखें—अतीत में झांकने का साहस, भविष्य को समझने की कुंजी है। अपने अनुभवों को सम्मान दें, उनसे ज्ञान ग्रहण करें, और उस ज्ञान को भविष्य की राहों पर संबल की तरह साथ लेकर चलें। यही सच्ची प्रगति और आत्मविकास की आधारशिला
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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