"उसूलों की राह"
बहुत छाले हैं उसके पैरों में…
कमबख़्त “उसूलों” पर चला होगा।
यह छोटी-सी पंक्ति गहरी सच्चाई कह जाती है। उसूलों पर चलना आसान नहीं होता। यह रास्ता सीधा दिखता ज़रूर है, पर हर कदम पर नुकीले पत्थर बिछे होते हैं। उसूलों की राह में समझौते की गली नहीं होती, छल की छांव नहीं होती, और न ही तात्कालिक आराम की कोई सुविधा होती है।
जो उसूलों पर चलता है, उसके पांव घायल होते हैं, पर आत्मा अडिग रहती है। दुनिया की चतुर चालों के बीच यह अकेलापन अक्सर तकलीफ़ देता है, मगर भीतर कहीं यह भी जानता है कि यही रास्ता अंततः सुकून देगा।
छाले उसी के पैरों में उगते हैं, जिसने अपनी रीढ़ सीधी रखी हो। ऐसे ही लोग दूसरों के लिए मशाल बनते हैं। वे दिखाते हैं कि असली विजय वही है, जो सिद्धांतों को बचाए रखे।
इसलिए अगर आपके पैरों में भी कभी छाले उगें, तो दुखी मत होना—यह निशान हैं कि आप कोई सस्ती राह नहीं, उसूलों की कठिन डगर चुन चुके हैं। और इसी डगर पर चलते-चलते इंसान अपनी आत्मा की सबसे ऊंची मंज़िल तक पहुँचता है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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