प्रेम भावना
जय प्रकाश कुवंरकुछ दिन नजर में चढ़ावे में लागल ।
कुछ दिन तोहरा के पटावे में लागल।।
रोज रोज हमरा गली में तू अइलू।
देखते देखते कोंढ़ी से फूल बन गइलू।।
फूल बन के सुगंघी गली में बिखेरलू।
रूप अइसन खिलल, जादू हमरा पर डरलू।।
हम अनाड़ी रहनी तोहार कदर ना कइनी।
पटवनी ना तोहके, हम खुद पट गइनी।।
निभाव अब नाता , भले दूर रह ऽ।
कुछ आपन कहत रहऽ, कुछ हमार सुनत रहऽ।।
जब ले रहबू इहाँ, अइसहीं फेरा लगइह ऽ।
मन में प्रेम भावना जगा के, तू भूल मत जइह ऽ।।
खाली देह के मिलल कबहूँ, प्रेम ना कहाला।
प्रेम अइसन भावना ह, जे दिल में बैठ जाला।।
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