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जगाते है

जगाते है

मैं अपने बारे में आज
सभी को कुछ बताता हूँ।
मेरी लेखनी के भी
मैं गुण दोष बताता हूँ।
भले ही लोग मुझको
पसंद कम करते है।
मगर मेरी निष्ठा पर
सवाल कोई नही करते।।


मैं मन से तो बहुत ज्यादा
अमीर इंसान हूँ लोगों।
मगर धन से मेरे जैसा
कोई कंगाल नही होगा।
मैं तन से भी बहुत ज्यादा
खुशाल इंसान हूँ लोगों।
मगर मेरी लेखनी में
समावेश इनका नही होता।।


इरादा हम अगर कर ले
तो सब कुछ कर सकते है।
अंधेरो में भी हम लोगों
रोशनी फैला सकते है।
मैं अपनी लेखनी से
जगाता हूँ सोये लोगों को।
उन्हें पुन: जीवित करके
खोई प्रतिष्ठा हासिल करवाते है।।


यही तो काम होता है
हम सब लेखको का।
जो पुरानी सभ्यता को
नये सांचे में डालते है।
और सोये और खोये को
जगाते और मिलाते है।
सभी में प्रेम-भावों की
लहर संचार कराते है।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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