कहिए कैसे आपके हैं विचार ,
किसके अनुरूप हैं ये आचार ।हम में आप में बहुत है अंतर ,
अलग अलग होते हैं व्यवहार ।।
व्यवहार बढ़ाता है अपनापन ,
व्यवहार से दिखता परायापन ।
अपने कहीं जब जाते हैं चले ,
तब दिखने लगता है सूनापन ।।
असहाय जो हो जाते लाचार ,
तब अपनापन देता है सहारा ।
अबतक जी बना था अजनबी ,
अब वही होता उसको प्यारा ।।
अपनापन में वह होती है शक्ति ,
मृत को भी जीवित वह कर दे ।
मायूस बना था जिसका जीवन ,
उस जीवन में उल्लास भर दे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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