माँ ने दिया ज्ञान
बंधन और संबंध बतलायेहे माँ तुमने ही मुझको।
फर्क दोनों का समझाया
समय समय पर आपने।
रिश्तों की परिभाषा को
हे माँ तुमने ही बतलाई।
कैसे कब और किससे
मिलना जुलना है तुमको।।
अपने पराये का फर्क
तुमने ही तो समझाया।
प्रीत प्रेम की डोरी को
कैसे बंधना है तुमको।
पग पग पर चलने में
तुमको मिलेंगे कांटे ही।
सोच समझकर चलना बेटे
अपने ही लूटते है अपनो को।।
देख जमाने के दस्तूरों को
तुमको अब अपनना है।
पराई बेटी को भी तुमको
अपनी संगानी बनाना है।
कल तक जो अपने थे
उनमें से कुछ अलग हो जायेंगे।
संसारिक रीति रिवाजों से
तेरे नाते अब जुड़ जायेंगे।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना"
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