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देख कर देह देहरी,हो रहा प्रेम दिखावा

देख कर देह देहरी,हो रहा प्रेम दिखावा

मानव अंतर दानव रुप,
अनैतिक आचार विचार ।
भोग तृप्ति उत्कंठा हित,
अबला शील पर प्रहार ।
अंग प्रत्यंग निहार विहार,
नेह पटल वासना छलावा ।
देख कर देह देहरी,हो रहा प्रेम दिखावा ।।


अंध भौतिक विकास कारण,
परिवर्तित जीवन परिभाषा ।
स्वच्छंद दिनचर्या व्यवहार,
मृग मरीचिकी भोग अभिलाषा ।
कुदृष्टि नारी तन मन पर ,
अवसर ताक पाशविक धावा ।
देख कर देह देहरी,हो रहा प्रेम दिखावा ।।


चल चित्र हो या विज्ञापन,
नारी अंग अवांछित प्रदर्शन ।
अति प्रोत्साहन अश्लीलता ,
वस्तु सम रूप श्रृंगार दर्शन ।
परिवेश पट कामुकता अथाह ,
दोषारोपण नारी मुस्कान पहनावा ।
देख कर देह देहरी,हो रहा प्रेम दिखावा।।


आत्मिक अनुभूत बिंदु गौण,
सर्वत्र व्याप्त पाश्चात्य चकाचौंध ।
बाह्य सौंदर्य तड़क भड़क शीर्ष,
सादगी शिष्टता संस्कारिता रौंद ।
आत्मसात प्रीत परिणय महत्ता ,
सचेत अन्यथा शेष मात्र पछतावा ।
देख कर देह देहरी,हो रहा प्रेम दिखावा ।।


कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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