दिव्य रश्मि : तप, त्याग और विचार की ज्योति

✍️ सुनीता पाण्डेय
अध्यक्षा – पवनसुत सर्वांगीण विकास केंद्र
(धर्मपत्नी : डॉ. राकेश दत्त मिश्र, संपादक – दिव्य रश्मि)
"जब उद्देश्य धर्म, समाज और संस्कृति की सेवा हो, तब वह कार्य किसी एक का नहीं रहता – वह संपूर्ण राष्ट्र की चेतना बन जाता है।"
28 मई 2014 को जब “दिव्य रश्मि” पुनः प्रकाशित हुई, तब यह केवल एक मासिक पत्रिका नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संकल्प के रूप में जन्मी। यह वही दिव्य रश्मि थी, जिसकी प्रथम रूपरेखा हमारे पूज्य स्वसुर जी श्री सुरेश दत्त मिश्र जी ने वर्षों पूर्व रखी थी। किसी कारणवश वह प्रयास रुक गया, परंतु उनकी अंतःप्रेरणा और संस्कार ने इस प्रकाश को बुझने नहीं दिया।
वर्ष 2014 में, उसी प्रेरणा से डॉ. राकेश दत्त मिश्र जी ने “दिव्य रश्मि” का पुनः प्रकाशन आरंभ किया। उस दिन से लेकर आज तक—बिना रुके, बिना थके—यह पत्रिका प्रकाशित हो रही है। मैं स्वयं इस पूरे यात्रा की जीवंत साक्षी हूँ।
❖ संघर्षों की पृष्ठभूमि में खड़ा एक स्तंभ
आप सोच सकते हैं कि एक पत्रिका हर महीने प्रकाशित होती है, इसमें क्या विशेष? परंतु जब आप जानेंगे कि यह पत्रिका बिना किसी आर्थिक सहायता, बिना किसी स्थायी स्टाफ के प्रकाशित हो रही है—सिर्फ एक व्यक्ति की लगन, प्रतिबद्धता और आत्मबल से—तब इसका महत्व स्वयं स्पष्ट हो जाएगा।
मैंने देखा है, कैसे डॉ. साहब रात्रि के अंतिम प्रहर तक लेख संकलन करते हैं, सामग्री तैयार करते हैं, प्रूफ पढ़ते हैं, और फिर वितरक तक पहुँचाने की योजना बनाते हैं। कई बार घर के आवश्यक खर्च को टालकर उन्होंने केवल “दिव्य रश्मि” को प्रकाशित करने हेतु संसाधन जुटाए।
❖ शब्दों से नहीं, संकल्पों से लिखी गई पत्रिका
हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव जी का एक वाक्य आज भी डॉ. साहब के जीवन का मार्गदर्शक है। उन्होंने कहा था:
"‘दिव्य रश्मि’ केवल एक नाम नहीं, वह विचार है – जो अंधकार में भी प्रकाश की रेखा खींचता है। यह वह संकल्प है, जो सनातन धर्म की अक्षुण्ण ज्योति को युगों तक जलाए रखने का व्रत लिए आगे बढ़ रहा है। इसे कभी बंद नहीं होने देना चाहिए।"
यही कारण है कि डॉ. साहब किसी भी परिस्थिति में इसे बंद नहीं होने देते। भले ही सहयोग का अभाव हो, लेकिन उनका आत्मबल ही इस पत्रिका का आधार है।
❖ दिव्य रश्मि – एक विचार, एक आंदोलन
यह पत्रिका केवल धार्मिक लेखों तक सीमित नहीं है, यह एक समग्र चेतना है—जिसमें सनातन परंपरा, राष्ट्र सेवा, सामाजिक विषय, स्त्री-शक्ति, पौराणिक स्थलों की जानकारी, और युवा चेतना का अद्भुत समन्वय है।
विशेषकर हिंदू माताओं और बहनों के लिए यह पत्रिका एक मार्गदर्शक, आस्था और जानकारी का स्रोत बन चुकी है।
❖ एक विनम्र अपील – जुड़ें, सहारा बनें
मैं यह आलेख एक पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि एक संघर्ष की साक्षी के रूप में लिख रही हूँ। क्या यह केवल एक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह पूरे समाज की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक चेतना को जीवित रखे?
आइए, हम सब इस ज्योति के रक्षक बनें—दिव्य रश्मि को केवल पढ़ें नहीं, उससे जुड़ें, उसे आगे बढ़ाएं, उसका संबल बनें।
“दिव्य रश्मि” एक दीप है – और यह तब तक जलेगा, जब तक एक भी हृदय में धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के प्रति प्रेम जीवित है।
📌 यदि आप दिव्य रश्मि को सहयोग देना चाहते हैं या इसकी डिजिटल सदस्यता लेना चाहते हैं, तो वेबसाइट www.divyarashmi.com पर पधारें या सीधे सम्पर्क करें।
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