जाने कब छोड़कर चल दे कोई जरा सी बात पर
जाने क्यूॅं होता भ्रम मुझे ,पहली ही मुलाकात पर ।
जाने कब छोड़कर चल दे ,
कोई जरा सी बात पर ।।
हुआ प्रेमी मैं तो उसी का ,
जिसका कायल हुआ हूॅं ।
देख लो दशा दुर्दशा कैसी ,
उसी से मैं घायल हुआ हूॅं ।।
दिल चुराया उसने मेरी ,
अपना दिल ले चली गई ।
पता न अजनबी होगी वो ,
मेरे बगल जन्मी पली भई ।।
थाने रपट लिखाऊॅं कैसे ,
खतादार का है पता नहीं ।
पता मिल भी जाए शायद ,
किंतु कहे मेरी खता नहीं ।।
धन दौलत सब यहीं मेरा ,
मैं भी तो पड़ा यहीं पे हूॅं ।
कैसे लिखाऊॅं थाने रपट ,
तन छोड़कर मैं वहीं पे हूॅं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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