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सनातन का सौंदर्य अपार

सनातन का सौंदर्य अपार

सृष्टि पटल दिव्य चेतना,
हर कदम परम आनंद ओर ।
स्नेह प्रेम दया उद्गम स्थल,
मानवता पटल शुभत्व भोर ।
मुदित मना मानस मुनियों सा,
मंथन चिंतन ज्ञान ध्यान सार ।
सनातन का सौंदर्य अपार ।।


परिध क्षेत्र ब्रह्मांड समाहित,
उत्संग प्रज्ज्वलित सत्य जोत ।
अहिंसा करुणा क्षमा जप तप,
दान यम नियम विमल श्रोत ।
धर्म परे जीवन दर्शन अनुपमा,
यज्ञ माध्य तन मन धन उपकार ।
सनातन का सौंदर्य अपार ।।


वसुधैव कुटुंबकम् मूल मंत्र,
उत्तम जीवन शैली पथ प्रशस्त ।
प्रोत्साहन समता सहिष्णुता,
ध्येय जाति धर्म भेदभाव अस्त ।
त्याग समर्पण संयम कर्तव्य संग,
हर पल सतयुग सम संसार ।
सनातन का सौंदर्य अपार ।।


नर नारी निः श्रेयस निश्छल,
परस्पर मर्यादा आदर गुणगान ।
दैनिक चर्या षोडश संस्कार युक्त,
प्राणी जगत सेवा आह्वान ।
सदा परिष्कृत चित्तकर्म वृत्ति,
नवल प्रकाश नव ओज विस्तार ।
सनातन का सौंदर्य अपार ।।


कुमार महेंद्र


(स्वरचित मौलिक रचना)
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