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वृद्धाश्रम सनातन संस्कृति पर कलंक

वृद्धाश्रम सनातन संस्कृति पर कलंक

हिंद संस्कृति संस्कार अनूप,
मात पिता देव तुल्य छवि ।
पर पाश्चात्यता प्रभाव कारण,
प्रचलित वृद्धाश्रम परंपरा नवि।
संतति निष्ठुर कर्तव्य विमुख,
चाह वृद्धजन परे जीवन अलंक ।
वृद्धाश्रम सनातन संस्कृति पर कलंक ।।


अद्य अंध भौतिक प्रगति कारण,
परिवर्तित परिवार अर्थ परिभाषा ।
परिध क्षेत्र मात्र पति पत्नी बच्चे,
हर पल निज स्वार्थ अभिलाषा ।
मात पिता पथ कंटक उपमा,
बाधक पद प्रतिष्ठा वैभव सलंक।
वृद्धाश्रम सनातन संस्कृति पर कलंक ।।


स्मृत अथक संघर्ष मात पिता,
सर्वस्व न्यौछावर संतति हित।
सजग प्रयास लालन पालन शिक्षा,
जप तप उज्ज्वल भविष्य निहित ।
लेकिन तिरोहित कर योगदान,
प्रदत्त अनंत उत्पीड़न सह बलंक।
वृद्धाश्रम सनातन संस्कृति पर कलंक ।।


तज वृद्धाश्रम व्यवस्था चिंतन,
अहम कदम मात पिता सेवा ओर ।
आशीष अंतर खुशियां निर्झर,
सुख समृद्ध मंगलमय हर भोर ।
अहो भाग्य मात पिता सानिध्य,
सदा स्वर्ग सदृश परिवार अंक ।
वृद्धाश्रम सनातन संस्कृति पर कलंक ।।


कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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