ललनाएं तोड़ रही हैं वर्जनाएं
अंतःकरण शिक्षा नव ज्योत,चाल-ढाल आत्मविश्वासी ।
ठुकरा कर रूढ़िवादी परंपराएं,
कदम अग्र हाव भाव साहसी ।
मुक्त उन्मुक्त आचार विचार,
कीर्तिमान उन्मुख सर्जनाएं ।
ललनाएं तोड़ रही हैं वर्जनाएं ।।
अभिव्यक्ति पट उत्साह उमंग,
अधिकार हेतु ओजस्वी पुकार।
नर-नारी भेद मूल विलोपन,
अनैतिकता विरुद्ध ललकार ।
चिन्मय बोध निज स्वतंत्रता,
हर क्षेत्र नवरंगी अल्पनाएं ।
ललनाएं तोड़ रही हैं वर्जनाएं ।।
तिरोहित पुरुष-प्रधान सोच,
समता समानता अहम बिंदु ।
अनुपालन संस्कृति संस्कार,
प्रगति अवसर पैहम सिंधु ।
दमन चक्र विरुद्ध उग्र स्वर,
सशक्ति बिंदु बुलंद विवेचनाएं ।
ललनाएं तोड़ रही हैं वर्जनाएं ।।
तोड़ मरोड़ वर्चस्व बेड़ी,
निराधार संशय जंजाल ।
नारी भोग्य वस्तु बहुत परे,
चमक दमक राष्ट्र भाल। ।
परिष्कृत कर सामर्थ्य प्रतिभा,
प्रगति पथ पर सिद्ध संकल्पनाएं ।
ललनाएं तोड़ रही हैं वर्जनाएं ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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