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नारी सौंदर्य अपरंपार

नारी सौंदर्य अपरंपार

बिंदी शोभा मुखमंडल ,
गात सौम्य पुनीत पावन ।
रग रग उत्साह उमंग,
संवाद रस निर्झर सावन ।
झुमकों अंतर गहरा राज,
जूड़ा गजरा मृदु अलंकार ।
नारी सौंदर्य अपरंपार ।।


कर कमल कंगन खनक,
भ्रमर गुंज कर्ण बिंदु ।
दामिनी तड़क मुक्ताहार ,
रवि गगन तिरोहित सिंधु ।
अंग प्रत्यंग कांति कड़क,
मस्त मलंग यौवन बहार ।
नारी सौंदर्य अपरंपार ।।


लावण्य अनुपमा मन मोहिनी,
दर्पण अथाह शर्म ओर।
तर्पण समर्पण भाव अद्भुत,
भूषण परिधान प्रणय भोर ।
चाल ढाल उभार लचक,
मोहित रोहित जन अंबार ।
नारी सौंदर्य अपरंपार ।।


वसन रक्त रंजित माध्य ,
शुभ्र सुनहरी कोमल काया ।
इंद्र अप्सरा आकर्षण मंद,
उर हिलोर प्रकृति मातृ माया ।
दुःख कष्ट मूल निवारक,
योग भोग पट आनंद धार ।
नारी सौंदर्य अपरंपार ।।


कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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