धनुर्मास (खरमास): खगोलीय नियमन से आध्यात्मिक उत्थान
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक माह और तिथि का अपना विशेष महत्व है, परंतु धनुर्मास (या खरमास) एक ऐसा तीस दिवसीय कालखंड है, जो खगोलीय परिवर्तन, गहन अध्यात्म और सामाजिक नियमन का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करता है। यह पर्व, जिसे विशेष रूप से दक्षिण भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है, मध्य मार्गशीर्ष से शुरू होकर मध्य पौष तक चलता है। धनुर्मास का वैज्ञानिक आधार सूर्य और बृहस्पति की खगोलीय स्थिति से जुड़ा है।धनुर्मास का प्रारंभ तब होता है जब सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं—यह घटना सामान्यतः प्रतिवर्ष 15 या 16 दिसंबर को घटित होती है और इसे धनु संक्रांति कहा जाता है। इस मास की समाप्ति मकर संक्रांति पर होती है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं और छह महीने के उत्तरायण (उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य का उत्तर की ओर गमन) का आरंभ होता है। धनु राशि के स्वामी स्वयं देवगुरु बृहस्पति हैं, जो ज्ञान, धर्म, और शुभता के कारक माने जाते हैं। ज्योतिषीय विज्ञान के अनुसार, जब सूर्य, बृहस्पति की राशि में प्रवेश करता है, तो सूर्य के तेज ताप और निकटता के कारण बृहस्पति का शुभ प्रभाव कुछ समय के लिए 'अस्त' हो जाता है। यह वह समय है जब गुरु (बृहस्पति) अपनी पूरी शक्ति से शुभ कार्यों के लिए फलित नहीं हो पाते। इसलिए इस मास को 'शून्य मास' या खरमास (खर का अर्थ गधा है, जो सूर्य के रथ की धीमी गति का प्रतीक है) कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह समय भौतिक सुखों के कार्यों को टालकर ऊर्जा संरक्षण और आत्म-चिन्तन के लिए उपयुक्त माना जाता है।
धनुर्मास का ऐतिहासिक और भक्तिपरक महत्व दक्षिण भारत के प्रसिद्ध गोदारंगनाथ कल्याण उत्सव की कथा में निहित है। पुराणों के अनुसार, पूर्व जन्म में भूमि देवी ने भगवान विष्णु से पूछा कि उनकी उपासना का सर्वोत्तम मार्ग क्या है। भगवान के कहने पर, भूमि देवी ने कलियुग के आरंभ में विष्णुचित्त जी के उद्यान में गोदाम जी (आँडाल) के रूप में अवतार लिया। गोदाम जी ने भगवान विष्णु के अवतार रंगनाथ को अपना पति मानकर, उनकी प्राप्ति के लिए कठोर उपासना का प्रण लिया। उन्होंने धनु संक्रांति से मकर संक्रांति तक पूरे तीस दिनों तक प्रतिदिन एक श्लोक की रचना की और उसका पाठ किया। यह श्लोक-संग्रह 'तिरूप्पावै' के नाम से विख्यात है, जो आज भी वैष्णवों के लिए भक्ति का मूल आधार है। इन तीस दिनों की निष्ठापूर्ण भक्ति के फलस्वरूप, 27वें दिन भगवान रंगनाथ ने उन्हें दर्शन दिए और उनसे विवाह किया। इस दिव्य मिलन को ही प्रतिवर्ष गोदा रंगनाथ कल्याण उत्सव के रूप में मनाया जाता है, और यही तीस दिवसीय अवधि धनुर्मास कहलाई। यह कथा दर्शाती है कि यह मास विशुद्ध रूप से प्रेममय भक्ति योग के लिए समर्पित है। धनुर्मास मुख्य रूप से भगवान विष्णु (वैकुंठ नाथ) को समर्पित है। इस मास में की गई उनकी पूजा को हजारों वर्षों की उपासना के समान फलदायी माना जाता है। इसके साथ ही, खगोलीय स्थिति के कारण सूर्य देव की आराधना भी विशेष रूप से की जाती है।
धनुर्मास एक चिरंतन खगोलीय घटना है, जो चारों युगों में घटित होती रही है, लेकिन कलियुग में इसका महत्व सर्वाधिक है: सतयुग: यह मास आत्म-कल्याण के लिए कठोर तपस्या और गहन ध्यान के लिए उपयुक्त था। त्रेता युग: इस काल में भगवान विष्णु को प्रसन्न करने हेतु बड़े-बड़े यज्ञों और वैदिक अनुष्ठानों पर बल दिया जाता था।
द्वापर युग: यह मास मंदिरों में अर्चना और मूर्ति पूजा (भाव-पूजा) पर ध्यान केंद्रित करने के लिए महत्वपूर्ण था।
कलियुग (वर्तमान): कलियुग में सबसे सरल और प्रभावी मार्ग नाम जप और भक्ति को माना गया है। धनुर्मास का पूरा सार भक्ति पर केंद्रित है। इसलिए, कलियुग के मनुष्यों के लिए यह मास सबसे सुलभ तरीके से मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करता है। धनुर्मास केवल पूजा-पाठ का ही नहीं, बल्कि सामाजिक अनुशासन और आत्म-विकास का मास भी है। इस मास में शादी, मुंडन, गृह-प्रवेश जैसे भौतिक सुखों और नए आरंभ से जुड़े कार्यों को निषिद्ध माना जाता है। यह प्रतिबंध लोगों को अनावश्यक खर्चों और विचलित करने वाली गतिविधियों से दूर रखता है। इस समय को शारीरिक ऊर्जा के संरक्षण और मानसिक स्थिरता के लिए उपयोग किया जाता है, ताकि मनुष्य का मन विचलित न हो और वह पूरी तरह ईश्वर उपासना में लीन रहे।
धनुर्मास में की जाने वाली पूजा को ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटा पहले) में करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
प्रातः स्नान और ब्रह्म मुहूर्त पूजा: सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। सूर्योदय से लगभग आधे घंटे पहले भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर उनकी पूजा आरंभ करें।: भगवान को तुलसी दल, पुष्प, चंदन और विशेष रूप से पायसम (खीर) का भोग लगाया जाता है।: इस मास में वेंकटेश स्त्रोत, विष्णु सहस्रनाम और गोदा जी द्वारा रचित तिरूप्पावै के श्लोकों का प्रतिदिन उच्चारण करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस अवधि में गरीबों, ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न और द्रव्य का दान करने से कई गुना फल प्राप्त होता है।धनुर्मास भारतीय ज्योतिष, खगोल विज्ञान और भक्ति परंपरा का एक संगम है। यह मास हमें सिखाता है कि जीवन में भौतिक सफलताएँ आवश्यक हैं, लेकिन उनसे कहीं अधिक आवश्यक आत्मिक शुद्धि और ईश्वर से जुड़ाव है। यह 30 दिनों की अवधि भौतिक दौड़ को विराम देकर, व्यक्ति को उसके अंतर्मन में झाँकने और भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त करने का महाद्वार प्रदान करती है। इस धनुर्मास का उद्देश्य यही है कि मनुष्य अपने मन को विचलित न होने दे और पूर्ण समर्पण भाव से परमपिता परमात्मा की उपासना करे।
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