मन और दिल
मन और दिल का मिलन कहाॅं ,मन और दिल में बहुत है अंतर ।
दिल होता जितना शांत गंभीर ,
मन होता है उतना ही छहंतर ।।
तन बना सुंदर एक मंदिर यह ,
दिल में भी तो है भगवान बसा ।
मन भी है उस मंदिर के पुजारी ,
पुजारी को नहीं यह पूजा रसा ।।
दिल नहीं होता बाल या युवा ,
दिल होता सदा यह है पुरातन ।
मन नहीं कभी बुजुर्ग है होता ,
मन को सदैव प्राप्त है युवापन ।।
मन को है पूजा नहीं यह भाता ,
दिन रात भ्रमण यह करता है ।
जबतक जीवित है जीवन चक्र ,
कभी शांत नहीं यह रहता है ।।
मन औ दिल जब एक हो जाए ,
शीघ्र मंदिल मंदिर हो जाएगा ।
दिख जाएगा मंदिर जिस दिन ,
शीघ्र ही मंजिल मिल जाएगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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