'दिव्य रश्मि' पत्रिका का 12वाँ स्थापना दिवस पर विशेष
दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |
भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को संजोए रखने के लिए अनेक मासिक पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, लेकिन उनमें भी “दिव्य रश्मि” मासिक पत्रिका का एक अलग ही स्थान है। 28 मई को पटना में इस पत्रिका ने अपनत्व और अध्यात्म की रश्मियों के साथ अपना 12वाँ स्थापना दिवस मना रहा है । यह अवसर केवल एक आयोजन नहीं है , बल्कि यह भारतीय सनातन परंपरा, समाजसेवा और अध्यात्म के पुनर्जागरण का सही मायने में साक्षात्कार है ।
“दिव्य रश्मि” मासिक पत्रिका की स्थापना वर्ष 2014 के २८ मई में पूज्य स्वर्गीय सुरेश दत्त मिश्र जी के प्रेरणास्रोत से की गई थी। उस समय इसका उद्देश्य केवल एक प्रकाशन का नहीं था, बल्कि एक आंदोलन का था। वह भी सनातन धर्म, संस्कृति, सामाजिक जागरूकता और अध्यात्म की सच्ची चेतना को जन-जन तक पहुँचाने का। डा० राकेश दत्त मिश्र (R D Mishra), जो पत्रिका के संपादक हैं, उन्होंने बताया कि इसका प्रकाशन तब से हर महीने बिना रुके हो रहा है। इस स्थायित्व के पीछे जो समर्पण है, वह आज के युग में विरल है।
“दिव्य रश्मि” का उद्देश्य केवल धर्म प्रचार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सशक्त मंच है जो समसामयिक घटनाओं, शिक्षाप्रद लेखों, राष्ट्रवाद, सनातन परंपरा और समाजसेवा को समान महत्व देता है। इसके प्रत्येक अंक में न केवल धार्मिक लेख होते हैं, बल्कि सरकार की उपलब्धियों, पौराणिक कथाओं, खोजी आलेखों, ज्योतिषीय विशेषताओं, और आध्यात्मिक विचारों का संकलन भी शामिल रहता है। पत्रिका का हर अंक हिन्दू समाज और धार्मिक माताओं के लिए खास होता है, जिसमें पौराणिक स्थलों और यात्राओं की विस्तृत जानकारी भी रहती है।
28 मई 2025 को पटना जगजीवन राम शोध संस्थान में “दिव्य रश्मि” की 11वीं वर्षगांठ को भव्यता और गरिमा के साथ मनाया गया। यह आयोजन केवल एक समारोह नहीं था, यह एक बौद्धिक सम्मेलन था जहाँ साहित्यकार, पत्रकार, और अध्यात्मिक प्रतिनिधियों की गरिमामयी उपस्थिति रही। मुख्य अतिथि के रूप में पंडित मार्कण्डेय शारदेय, अध्यक्ष के रूप में पंडित कमलेश पुण्यार्क, अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ मदन दुबे , विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ अरुण कुमार उपस्थित रहेंगे । इस आयोजन में विनायक दामोदर सावरकर जी की 141वीं जयंती के उपलक्ष्य में उनके जीवन और देशभक्ति के योगदान पर विस्तृत रूप से चर्चा किया जायेगा ।
“दिव्य रश्मि” के हर अंक की एक विशेषता उसका कवर पेज होता है। कवर पेज केवल सुंदर नहीं होते हैं, बल्कि उनमें गहन संदेश और प्रतीकात्मकता समाहित होती है। अब तक प्रकाशित कुछ प्रमुख कवर पेज का विषय रहा है भारत के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर, कृष्ण लीलाओं में छिपा संदेश, नौ रूपों में माँ दुर्गा की महिमा, स्वामी विवेकानन्द - आध्यात्मिक गुरु, योग में छिपा है जीवन का रहस्य, महाराणा प्रताप विशेषांक, भविष्यद्रष्टा सावरकर, भगवान परशुराम, आदि शंकराचार्य, शिवाजी महाराज, भगवान बुद्ध, और भारत के सच्चे इतिहास पर विशेष आलेख रहा है।
वहीं, पत्रिका ने “सूर्य मंदिर” से अपनी कवर पेज की यात्रा शुरू किया था। उसके बाद आलेखों में दुर्लभ संत, इतिहास की भयंकर भ्रान्ति, पृथ्वी-सूर्य-चन्द्र आदि की उत्पत्ति, मौन व्रत की महिमा, हिंदुओं का चिंतन, जातकर्म संस्कार, सीमन्तोन्नयन संस्कार, पुंसवन संस्कार, कर्णवेध संस्कार, गोवा विधर्मियों का नहीं, भारतीय इतिहास, क्या सावरकर जी ने माफ़ी…., क्या आप पत्रकार है, विद्यारंभ संस्कार, रथसप्तमी, मुंडन संस्कार, अन्नप्रासन, सूर्य और सात घोड़े, कृष्ण लीलाओं में छिपा संदेश, नौ रूपों में माँ दुर्गा की महिमा, भगवान स्वामी नारायण, स्वामी विवेकानन्द आध्यात्मिक गुरु, शिव पार्वती संवाद, देश प्रथम होता है धर्म नही, योग में छिपा है जीवन का रहस्य, जगत जननी आदिशक्ति योनिरुपाय कामाख्या देवी, हनुमान जी अमर कैसे, भगवान परशुराम, आदि शंकराचार्य, चक्रवर्ती सम्राट शिवाजी एवं भगवान बुद्ध जैसे अनेको मत्वपूर्ण शीर्षकों से प्रकाशन किया जा चुका है, जिसमें एक से एक गूढ़ बातों की जानकारी मिलती रही है। इन विषयों की प्रस्तुति इतनी सजीव होती है कि पाठक केवल पठन नहीं करता है, बल्कि वह उस विषय से अपने आप को जुड़ाव महसूस करता है।
“दिव्य रश्मि” पत्रिका के कार्य संचालन में कोई भी सदस्य वेतन या मानदेय नहीं लेता है यानि पूरी तरह से अवैतनिक है और सभी सदस्य सेवा-भाव से परिवार की तरह जुड़े हुए हैं। यही “दिव्य रश्मि” को “पत्रिका” नहीं बल्कि “परिवार” बनाता है। संपादक डॉ. राकेश दत्त मिश्र (R D Mishra) के नेतृत्व में, सक्रिय सदस्य के रूप से सलाहकार समिति में डॉ सच्चिदानंदन ‘प्रेमी’, आचार्य राधा मोहन मिश्र ‘माधव’, मार्कण्डेय शारदेय, अरविन्द पाण्डेय, कमलेश पुण्यार्क ‘गुरुजी’, संपादक मंडल में जितेन्द्र कुमार सिन्हा, प्रेम सागर पांडेय, सुबोध कुमार, सुबोध कुमार सिंह, विधि परामर्शदाता में संजीव कुमार और लक्ष्मण पाण्डेय, लखनऊ से दिलीप कुमार, औरंगाबाद से अरविंद कुमार अकेला और पटना से सुरेन्द्र कुमार रंजन तथा छायाकार पप्पू सिंह हैं। सदस्यों का समर्पण भाव में ही “दिव्य रश्मि” को विशेष बनाता है।
संपादक डॉ. राकेश दत्त मिश्र के नेतृत्व के संबंध में जितेन्द्र कुमार सिन्हा का कहना है कि डॉ. मिश्र अपनी भाईचारा और प्रेम का उद्दमपरिचय देते हैं और अपने सभी सदस्यों को पुष्पमाला की तरह जोड़ कर रखते हैं। पत्रिका संगठन, पवनसुत सर्वांगीण विकास केन्द्र के सहयोग से प्रत्येक वर्ष अपनी स्थापना दिवस के अवसर पर विनायक दामोदर सावरकर जी की जयंती मनाती है और उनकी जीवनी पर, उनके देश के प्रति समर्पित भावनाओं पर, गहराई से प्रकाश डालते है और आगंतुक अतिथियों और पत्रिका के प्रति अच्छे योगदान के लिए हौसला अफजाई करने के उद्देश्य से पत्रकारों को सम्मानित भी करते है। पत्रकारों का कोई भी समस्या हो, वे व्यक्तिगत रूप से उसका समाधान करते हैं। इस कारण से ही सभी सदस्य उन्हें पारिवारिक मुखिया मानते हैं और उसी भावना से काम करते हैं।
श्री सिन्हा ने बताया कि 11 वर्ष पूरे होने के बाद अब “दिव्य रश्मि” अपने 12वीं वर्ष मना रही है। संपादकीय टीम का उद्देश्य अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी अपनी मौजूदगी मजबूत करना है और इस उद्देश्य से मासिक पत्रिका के साथ साथ पोर्टल, यूट्यूब चैनल, और ई-पत्रिका के माध्यम से युवा वर्ग को भी जोड़ा जा रहा है। भविष्य में देशभर में साहित्यिक संगोष्ठियां, धार्मिक यात्राओं, और सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजन की भी योजना बना रही है ताकि “दिव्य रश्मि” का संदेश केवल पत्रिका तक सीमित न रहे, बल्कि लोगों के मन-मस्तिष्क तक पहुँचे।
देखा जाए तो, “दिव्य रश्मि” केवल एक पत्रिका नहीं है बल्कि यह एक चेतना है, जो अध्यात्म, संस्कृति और समाज को एकसूत्र में बाँधती है। यह 11 वर्षों की यह यात्रा यह सिद्ध करती है कि यदि उद्देश्य पवित्र हो, नेतृत्व समर्पित हो और टीम भावनात्मक रूप से एकजुट हो, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं होता है।“दिव्य रश्मि” का यह नववर्ष समाज के लिए एक प्रकाशपुंज है, जो आगे भी अपनी रश्मियों से मार्गदर्शन करता रहेगा। स्थापना दिवस पर संपूर्ण आयोजन, संपादन और सतत प्रकाशन के लिए “दिव्य रश्मि” की पूरी टीम को बधाई एवं शुभकामनाएँ। यह दिव्यता अनवरत जलती रहे।
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