सनातन राष्ट्र शंखनाद : एक कदम रामराज्य की ओर !

प्रस्तावना : वैश्विक इतिहास में अनेक संस्कृतियाँ उदय होकर कालांतर में विलीन हो गईं, जैसे ग्रीक, रोमन संस्कृतियाँ आदि; किंतु राजनीतिक संघर्ष, विदेशी आक्रमण, प्राकृतिक आपदाओं जैसी विविध आपत्तियों का सामना करते हुए एकमात्र जो संस्कृति आज भी अक्षुण्ण बनी हुई है, वह सनातन संस्कृति है। 'सनातन' का अर्थ है शाश्वत, चिरंतन और नित्य नुतन तत्व। सनातन धर्म ने सदा ही विश्वकल्याण की संकल्पना प्रस्तुत की है। यही भारत की आत्मा है। जब तक सनातन धर्म का अनुसरण होता रहा, तब भारत वैभव के शिखर पर था। परंतु पिछले कुछ दशकों में सनातन धर्म को हेतुपुरस्स उपेक्षित और उपहासास्पद रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास कुछ लोग कर रहे है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि पारिवारिक, मानसिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई। वर्तमान में कई संगठन और व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के प्रभाव में आकर सनातन धर्म को समाप्त करने का षड्यंत्र चला रहे हैं। इस परिस्थिति में सनातन धर्म की रक्षा हेतु देव (ईश्वर), देश और धर्म की सेवा करने वाले व्यक्तियों, संस्थाओं एवं संगठनों का संघटन और जागृति अत्यावश्यक है। सनातन धर्म की पुनर्स्थापना से ही रामराज्य रूपी तेजस्वी राष्ट्र का निर्माण संभव है। इसी उद्देश्य से गोवा में 17 से 19 मई तक ‘सनातन राष्ट्र शंखनाद’ महोत्सव का आयोजन किया गया है।
सनातन राष्ट्र की संकल्पना : सनातन सिद्धांत मूलतः सबका कल्याण करनेवाली, व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति करने वाले तथा सर्वसमावेशक हैं। ये किसी एक जाति या समुदाय तक सीमित न होकर संपूर्ण मानवजाति के लिए उपयोगी हैं। ये सिद्धांत न्याय, समानता, नीति, योग, साधना आदि पर आधारित हैं। वेद, उपनिषद, गीता, रामायण, महाभारत, ज्ञानेश्वरी जैसे धर्मग्रंथों में इन्हीं तत्त्वों का दर्शन मिलता है। सनातन राष्ट्र इन सिद्धांतों पर आधारित एक आदर्श, कल्याणकारी राष्ट्र होगा। संक्षेप में, त्रेतायुग के रामराज्य का कलियुगीन रूप ही ‘सनातन राष्ट्र’ है।
वर्तमान स्थिति और धर्माधिष्ठान का महत्व : आज की धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में गो, गंगा, गीता, तुलसी, मठ-मंदिर जैसे सनातन प्रतीकों पर निरंतर प्रहार हो रहे हैं। आधुनिकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सनातन श्रद्धास्थानों का उपहास किया जा रहा है। हिंदू परंपराओं और आचरणों को अंधश्रद्धा बताकर नकारा जा रहा है। वैदिक विज्ञान को ‘छद्म विज्ञान’ कहकर बदनाम किया जा रहा है।
पारिवारिक स्तर पर देखें तो आज देवीस्वरूपा नारी भी सुरक्षित नहीं है। परिवारों में आपसी प्रेम और जुड़ाव कम हुआ है। व्यक्ति भौतिक रूप से समृद्ध होकर भी मानसिक रूप से दुर्बल हो गया है। संकटों का सामना करने की प्पक्षमता घट गई है। इसका मूल कारण है – धार्मिक आचरण, साधना और उपासना का अभाव।
धर्म ही व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति का आधार है। धर्म विहीन भारत केवल भूगोल रह जाएगा। यदि भारत के गौरवपूर्ण इतिहास की परंपरा को बनाए रखना है, तो धर्म की रक्षा अनिवार्य है।
सनातन राष्ट्र की आवश्यकता: यद्यपि आज धर्म पर हो रहे आघातों के विरोध में जागृति आई है और रक्षण हेतु आंदोलन चल रहे हैं, फिर भी हिंदुत्व पर होने वाले आघात पूरी तरह से थमे नहीं हैं। ‘प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ जैसे काले कानूनों ने विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े गए मंदिरों के पुनर्निर्माण के मार्ग को अवरुद्ध कर रखा है। हाल ही में संशोधित वक्फ कानून से कुछ नियंत्रण भले आया हो, लेकिन अब भी कई धार्मिक स्थलों की जमीन धर्मांधों के अवैध कब्जे में हैं। घुसपैठ का संकट इतना गंभीर है कि देश के कुछ हिस्सों के अलग होने की आशंका उत्पन्न हो गई है।
वर्तमान व्यवस्था धर्म और राष्ट्र पर हो रहे आघातों को रोकने में असमर्थ है। इसलिए सनातन राष्ट्र की आवश्यकता अत्यावश्यक हो गई है। देश का विकास केवल जीडीपी या तकनीक से नहीं होताहै, अपितु धर्म से होता है ( ‘धर्मेण जयति राष्ट्रम्’), इसलिए भारतीय संस्कृति में सोने की लंका नहीं, श्रीराम के रामराज्य की पूजा की जाती है।
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले की दूरदृष्टि : आज सनातन शब्द व्यापक चर्चा का विषय बन चुका है और हिंदू राष्ट्र की मांग भी तीव्र होती जा रही है। सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले ने आज से 27 वर्ष पूर्व ही, जब ‘हिंदू’ शब्द का उच्चारण भी साहस का विषय था, तब ‘ईश्वरी राज्य की स्थापना’ नामक ग्रंथ लिखकर आध्यात्मिक राष्ट्ररचना की संकल्पना दी थी। यह संतों की दूरदृष्टि का प्रमाण है।
अब तक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले जी ने धर्म, अध्यात्म, साधना आदि विषयों पर 380 से अधिक ग्रंथों का संकलन किया है और भारतीय संस्कृति की कला-विद्या के पुनरुद्धार हेतु कई उपक्रम आरंभ किए हैं। हिंदुत्व पर हो रहे आघातों को जनता तक पहुँचाने हेतु उन्होंने ‘सनातन प्रभात’ नामक प्रखर हिंदुत्ववादी पत्रिका आरंभ की। उनकी प्रेरणा से हिंदू एकता के विविध आंदोलन भी सफलतापूर्वक चलाए जा रहे हैं। देश-विदेश में इस कार्य का जलद गति से विस्तार होना, उनके दैवी कार्य की पुष्टि करता है।
सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव: सनातन संस्था के रजत महोत्सव एवं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित ‘सनातन राष्ट्र शंखनाद’ केवल एक धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, अपितु धर्म और राष्ट्ररक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
यह भारत के उज्ज्वल भविष्य की उद्घोषणा है। इस अवसर पर धर्म सेवा हेतु क्रियाशील और गतिशील होना, राष्ट्र रचना अर्थात धर्मसंस्थापना में सहभागी होने जैसा है। यही वर्तमान युग की श्रेष्ठ साधना भी है।
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