जबसे देखलीं निशा आईल गईल ,
हमरा हिर्दय में भारी शोर हो गईल ।चेहरा त लउकल कोईलो से करिया ,
हमरा मनवा में तबहुॅं त चोर हो गईल ।
दिल लागल देवाल से परी कवना कामके ,
देखत देखत मयूरी त मोर हो गईल ।
प्रेमवा से प्रेम जब प्रेम से टकराईल ,
देखत देखत निशा में विभोर हो गईल ।
जईसहीं आवेली निशा हमरे से मिले ,
निशे में निनिया त पोरे पोर हो गईल ।
निशा निशे में हमरा जब जगावत रहे ,
देखहीं में अंधरिया अंजोर हो गईल ।
फजीरहीं चिरईं जब चहके लागल ,
बात करहुॅं ना पवलीं कि भोर हो गईल ।
निशा आईल कोईलो से करिया लागल ,
आधी रतिया से निशा गोर हो गईल ।
आईल निशा जब हमरा से मिले ,
अंधरिया में बादल घनघोर हो गईल ।
हम त जनलीं हमरा प्यार रहे निशा से ,
जीवन बीतते निशा त थोर हो गईल ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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